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________________ ( २४४ ) देवागमन .१४ लोकांतिक देवों का संबोधन हेतु-आगमन वेसमण - कुंडल - धरा, देवालोगंतिया महिड्ढीया । बोहिंति य तित्थयरं, पण्णरससु कम्मभूमिसु ।। बंभंमि य कप्पंमि य, बोद्धव्वा कण्हराइणो मज्झे । लोगंतिया विमाणा, अट्ठसु वत्था असंखेजा। एए देवणिकाया, भगवं बोहिति जिणवरं वीरं । सव्व - जगजीवहियं, अरहं तित्थं पव्वत्तेहिं ।। -आया० श्रु २/अ १५/सू २६ में उद्धृत महाऋद्धि के धारक कुबेर तथा कुंडलधारी लोकांतिक देव पंद्रह कर्मभूमियों में तीर्थकर भगवान को प्रतिबोध करते हैं। अतः भगवान महावीर का दीक्षाकाल निकट जानकर-लोकांतिक देव-जितकल्पीदेव भगवान के पास आकर कहा-जगत में सर्वजीवो केहितके हित, सुख और 'निःश्रेयस करने वाले धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करो। .१५ महाशुक्र विमानवासी अमायी सामानिक देवों का - (क) तेणं कालेणं तेणं समएणं महासुक्के कप्पे महासामाणे विमाणे दो देवा महिड्ढिया जाव महेसक्खा एगविमाणंसि देवत्ताए उववण्णा ।x x x तएणं से अमायिसम्मदिहिउववण्णए देवेxxx। जाव च णं समणे भगवं महावीरे भगवओ गोयमस्स एयम परिकहेइ तावं च णं से देवे तं देसं हव्वमागए। तएणं से देवे समर्ण भगवं महावीरं तिक्खुत्तोxxxवंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी -भग० श १६/७ ५ सू ५५, ५६/पृ० ७२२ उस काल उस समय में महाशुक्र कल्प के 'महासामान्य' नामक विमान में महर्द्धिक यावत् महासुख वाले दो देव, एक ही विमान में देवपने उत्पन्न हुए। उनमें अमायि सम्यगदृष्टि देव ( जब भगवान महावीर इस जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में उल्लूकतीर नामक नगर के एक जंबूक उद्यान में श्रमण भगवान महावीर विचरण करते हैं । जिस समय श्रमण भगवान महावीर ने गौतमस्वामी को शकेन्द्र के जाने की बात कह रहे थे-उस समय शीघ्र ही वह अमायि सम्यग्दृष्टिदेव वहाँ आया और श्रमण भगवान महावीर को तीन बार प्रदक्षिणा की और वंदन नमस्कार कर पूछा For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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