SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हे भगवन् ! तुम सब जानते हो, सब देखते हो। तीनों काल के वर्तन को जानते हो, केवलज्ञान से तीनों काल के वर्तन को देखते हो। केवलज्ञान, केवलदर्शन से सर्व वस्तु के भाव-पर्याय को भी जानते हो, देखते हो । हे देवानुप्रिय ! मेरे पूर्व की घटनाओं को जानते हो, तत्पश्चात् घटनाओं को भी जानते हो। परन्तु गौतमादि गणधर जो छद्मस्थ अमण निन्थ है---को मुझे जो देव संबंधी दिव्य ऋद्धि, दिव्य द्य ति, दिव्य भाव मिला है, प्राप्त हुआ है, सम्मुख आया है-उसे मैं चाहता हूँ कि अहो ! देवानुप्रिय ! भक्ति पूर्वक गौतमादि श्रमण नियन्थों को दिव्य देव सम्बन्धी ऋद्धि, दिव्य देव सम्बन्धी द्यु ति, दिव्य देव सम्बन्धी माव, दिव्य बतीस प्रकार का नाटक दिखाना चाहता हूँ। श्रमण निर्ग्रन्थों को दिव्य-ऋद्धि आदि को दिखाना चाहता हूँ। तब श्रमण भगवान महावीर ने सूर्याभदेव के उक्त कथन को श्रवणकर सूर्याभदेव के उक्त कथन का आदर नहीं किया, अच्छा भी नहीं जाना परन्तु मौन रहे। १- तब बहुत से देवकुमार-देवकुमारियों ने-श्रमण भगवान महावीर के सम्मुख बतीस प्रकार के नाटक की रचना की। उसकी विधि १- सर्व प्रथम भगवान महावीर के सम्मुख साथिया, श्रीवत्स साथिया, नंदावर्त साथिया, सरावला संपुट, भद्रासन, कलश, मच्छ, युग्म और दर्पण ( आरिसा)-ये आठ मगल के चित्राकार नाटक की रचना रचकर बतायी। २-तब फिर वे देवकुमार-देवकुमारी का एक ही साथ समवसरण किया-इकट्ठे मिले, मिलकर उक्त प्रकार का सब कथन कहना यावत् दिव्य देव रमणीय प्रवर्तते हुएतब फिर देवकुमार-देवकुमारीकाओं श्रमण भगवान महावीर के सम्मुख-१ आवत, प्रत्यावर्त, २ उत्तरावर्त साथिया के रूप, सीधी श्रेणी, उलटी श्रेणी--इस प्रकार साथिया श्री स्वस्तिक लक्षण युक्त, मच्छियों के अंडे के आकार, जारा-मारी लक्षण विशेष मणि के आकार, फूलों की पंक्ति, पद्मकलकी पाखंडियाँ, विविध भांति के चित्रों के नाम का दिव्य प्रधान द्वितीय नाटक दिखाया। ३-ऐसे ही आगे के एक-एक नाटक की अलग-अलग विधि जानना। समवसरण कर नाटक किये, गीत गाये, वादित्र बजाये, देवरमण में प्रवर्तन किया-इत्यादि सब उक्त प्रकार से कहना। तब से बहुत देवों के कुमार, देवों की कुमारिका-श्रमण भगवान महावीर के अ गे वरगड, मृग, वृषभ, घोड़ा, मनुष्य, किन्नर, देव, शाहमृग, अष्ट पद, चमरी गाय, हस्ति, अशोकलता, पद्मलता-इस प्रकार विविध प्रकार के चित्राकार नाम का तीसरा दिव्य नाटक बतलाया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy