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________________ तत्पश्चात् मेरे तीर्थकर नामगोत्र नाम का मोटा कम है-वेदने योग्य है। भव्यजनों को प्रतिबोधित देने के योग्य है-ऐसा विचार कर असंख्य कोटि देवों से परिवारित देवों द्वारा संचारित सुवर्ण कमल पर चरण मुकते हुए भगवान दिवस की तरह देवों के उद्योत से रात्रि में भी प्रकाश करते हुए बारह योजन की विस्तारवाली भव्य-प्राणियों में अलंकृत और यज्ञ के लिए मिले हुए, प्रबोध के योग्य-बहुत से शिष्यों से परिवारित गौतमादि विप्रों द्वारा सेवित अपापा नगरी में पधारे--महासेन उद्यान में ठहरे । नोट-भगवान महावीर वैशाख शुक्ला एकादशी को मध्यम पावा पहुंचे। महासेन उद्यान में ठहरे। अपापा नगरी में (चतुर्विध संघ की स्थापना के बाद) अपापा नगरी से तत्रातिगन्म्य कतितिदिवसानि विश्वविश्वोपकारनिरतः प्रतिबोध्यलोकम् । स्वामी सुरासुरनरेश्वर सेव्यमानपादारविन्दयुगलो विजहार पृळ्याम् ॥१८६।। –त्रिशलाका पर्व १०/सर्ग ५ सर्व विश्व का उपकार करने में तत्पर और सुर-असुर तथा राजाओं में जिनके चरण कमलों का सेवन किया है-ऐसे वीरप्रभु कितनेक दिन अपापा नगरी में वास कर लोकों को प्रतिबोधित कर वहाँ से अन्यत्र विहार किया। (ख) अंतिम-अपापानगरी अथ तत्र सुराश्चक्रुर्वप्रत्रितयभूषितम् । रम्यं समवसरणं स्वामिनो देशनासदः ॥१॥ ज्ञात्वा निजायुयुबीन्तमन्तिमां देशनां प्रभुः। कतुं तस्मिन्नुपाविक्षत् सुरासुरनिषेवितः॥२॥ स्वामिनं समवसृतं ज्ञात्वाऽपापापुरीपतिः । हस्तिपालः समागत्य नत्वा च समुपाविशत् ॥३॥ -त्रिशलाका पर्व १०/सर्ग १३ अपापा नगरी में भगवान अन्तिम बार पधारे । यहाँ भगवान का अन्तिम चातुर्मास था। हस्तिपाल राजा भगवान के पास आकर नमस्कार किया। (ग) भगवान का विपुलाचल से विहार करते हुए से पावापुर आगमन अंत-तित्थणाहु विमहि विहरिधि । जण-दुरियाई दुलघई पहरिवि ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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