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________________ ( २०२ ) कल्पवृक्ष के समान सम्यक्त्व ज्ञान-चारित्रतप और दीक्षारूपी मनोवांछित महामणियों को नित्य देते हुए चतुर्विध संघ और देवों से आवृत्त और धर्म के स्वामी ऐसे भी वीरजिनेन्द्र राजगृह के बाहर स्थित विपुलाचल के उन्नत शिखर के ऊपर आये। .२९ अइसयविहूइसहिओ, गण-गणहर-सयलसंघपरिवारो। विहरन्तो चिय पत्तो, विउलगिरिन्दं महाधीरो॥ --पउच० अधि २/ शा ३७ शिष्य समुदाय, गणधर एमम् सकल संघ के साथ विहार करते हुए तथा शानादि अतिशय विभूतियों से युक्त भगवान महावीर एक बार विपुलाचल पर पधारे । .३० तो अद्धमागहीए, भासाए सव्वजीवहियजणणं । जलहरगम्भीररयो, कहेइधम्म जिणवरिन्दो ॥ -पउच० अधि २ गा ६१ .३१ जुगक ग्राम से विहार ( कैवल्यज्ञान की प्राप्ति के बाद प्रथम विहार) अपापा नगरी की ओर विहार । (क) उपकाराऽहलोकानामभावातत्र च प्रभुः। परोपकारकपरः प्रक्षीणप्रेमबंधनः ॥१४॥ तीर्थकृन्नामगोत्राऽऽख्यं कर्मवेद्य महन्मया । भव्यजन्तुप्रयोधेनानुभाव्यमिति भाषयन् ॥१५॥ द्युसन्निकायकोटीभिरसंख्याताभिरावृतः। सुरैः संचार्यमाणेषु स्वर्णाब्जेषु दधत्क्रमौ ॥१६।। स्फुटे मार्गे दिन इवदेवोद्योतेन निश्यपि । द्वादशयोजनाऽध्वानां भव्यसत्त्वैरलंकृताम् ॥१७॥ गौतमाद्यः प्रबोधार्टभूरिशिष्यसमावृतैः । यज्ञाय मिलितेजुष्टामपापामगमत्पुरीम् ॥१८॥ तस्या अदूरे पुर्याश्च महासेनवनाभिधे । त्रिशलाका० पर्ष १०/सर्ग ५ जगक ग्राम में उपकार के योग्य जीवों का बिल्कुल अभाव होने से परोपकार में तत्पर और जिनका प्रेम बंधन क्षीणता को प्राप्त हो गया है-भगवान् ने वहाँ से विहार किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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