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________________ ( २०० ) तदा पुरे राजगृहेभ्युपेतं __ श्रीवीरनाथं स मुनिर्ववन्दे । तत्पादपद्मद्वयसेवया स्वं । कृतार्थयित्वा व शिवं प्रपेदे॥३५६॥ -त्रिशलाका पर्व १०/सर्ग ७ राजगृह नगर में पधारे हुए श्री वीरप्रभु को आर्द्र कुमार मुनि ने वंदना की। और उनके चरण कमल की सेवा में कृतार्थ होकर अंत में मोक्ष प्राप्त किया। '२४ विपुलाचल पर्वत पर विहरंतु वसुह विद्धत्थ-रइ । विउलइरि पराइउ भुवणवइ । -वीरजि० संधि २कड ८/पृ ३६ भगवान महावीर-वसुधा पर विहार करते हुए तथा काम व्यसन को दूर करते हुए राजगृह के समीप विपुलाचल पर्वत पर पहुँचे । .२५ विपुलाचल पर्वत पर आहिंडिवि मंडिवि सयल माहि । धम्में रिसि परमेसरु ॥ ससिरिहि विउलइरिहि आइयउ। काले वीर-जिणेसरु ॥ वीरजि०-संधि ४/कडर भगवान महावीर विचरण करते हुए तथा अपने धर्मोपदेश से समस्त जगत को अलंकृत करते हुए यथा समय सुन्दर विपुलाचल पर्वत पर जाकर विराजमान हुए । .२६ एवं श्रीषर्धमानेशो विदधद्धर्म देशनाम् ॥ कुमाद्राजगृहं प्राप्य तस्थिवान् विपुलाचले ॥ श्रुत्वैतदागम सद्यो मगधेशत्वमागतः ॥ -उत्तपु०/पर्व ७४/श्लो ३८४/पूर्वार्घ, ३८५ इस प्रकार वर्धमान महावीर स्वामी धर्मदेशना करते हुए अनुक्रम से राजगृह नगर आये। वहाँ विपुलाचल नामक पर्वत पर स्थित हो गये। जब श्रेणिक राजा ने भगवान के आगमन का समाचार सुना तब शीघ्र वहाँ आया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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