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________________ ( १७४ ) सुरासुर से सेवित श्री वीरप्रभु वहाँ से विहारकर परिवार के साथ में पृष्ठचंपानगरी पधारे। वहाँ साल नामक राजा और महासाल नामक युवराज-दोनों भाई त्रिजगत के बंधु भी वीर भगवान् को वंदनार्थ आये। प्रभु की देशना सुनकर दोनों भाई प्रतिबोध को प्राप्त हुए। .२३ चंपानगरी में भगवान् का पदापण . (क) तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरेx x x आगासगएणं वक्केण', आगासगएणं छत्तेणं, आगासियाहिं चामराहिं,आगस-फालि-आमएणं सपायवीवेणं सीहासणेणं, धम्मज्झएणं, पुरओ पकड्विज्जमाणेणं (चउहसहि समणसाहस्सीहि, छत्तीसाए अजिआ-साहस्सीहि-सद्धिं संपरिखुडे पुव्वाणुपुचि चरमाणे, गामाणुग्गामं दूइजमाणे, सुहंसुहेणं विहरमाणे, चम्पाए नयरीए बहिया उवणगरग्गामं उवागए, चंपं नगरिं पुण्णभई चेइयं समोसरिउ" कामे । -ओव• सू० १६ आकाशवर्ती धर्मचक्र, आकाशवर्ती तीन छत्र, आकाशवर्ती या ऊपर उठते हुए चामर, पादपीठ (= पर रखने की चौकी, सहित, आकाश के समान स्वच्छ स्फटिकमय सिंहासन और आगे-आगे चलते हुए धर्मध्वज ( चौदह हजार साधु और छत्तीस हजार भाविकाएँ ) के साथ घिरे हुए क्रमशः विचरते हुए, एक ग्राम से दूसरे ग्राम को पावन करते हुए और शारीरिक खेद से रहित-संयम में आनेवाली बाधा पीड़ा से रहित विहार करते हुए, चंपानगरी के बाहर के उपनगर में पधारे और वहाँ से चम्पानगरी के पूर्णभद्र चैत्य में पधारने वाले थे। (ख) तएणं समणे भगवं महावीरे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमल-कोमलुम्मिलियम्मि अह पंडुरे पहाए-रत्तासोगप्पगास किंसुअसुअ-मुहगुंजद्ध-राग सरिसे कमलागर-संड-बोहए उठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिमि दिणयरे तेयसा जलंते, जेणेव चंपा णयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छद उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ । मोव० सू २२ जब गगन मण्डल में मुस्कराती ऊषा रात्रि को विदाकर अपने अंक में फूलते पादपों एवम् सुकुमार कलियों के कोमल नयनों को स्वयम् के हल्के स्पर्श से खोल रही थी और जब यह प्रभात लाल अशोक के पुष्प के समान प्रभा वाले पलाश (खाँखरे ) के सुमन, शुक की चोंच एवम् गुंजा फल के अर्द्धभाग के लाली ( अरुण-लाल ) के समान हो रहा था एवम् कमलागरों (जलाशयों) के कमल दल के चेतन्य-प्रदायक, सहस्त्र रश्मियों वाले दिवस स्रष्टा अर्थात् 'रवि' के, तेज से ज्वाजल्यमान रूप सहित व्योम के पूर्वभाग में उदय होने के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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