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________________ ( १६६ ) पहले ददुर विचार करने लगा कि मैंने पूर्व ऐसे सुना है । बार-बार उसका ऊहापोह करने से स्वप्न में स्मरण की तरह उसे तत्काल जातिस्मरण ज्ञान हुआ। १९ श्रावस्ती में पदार्पण (क) तेणं कालेणं तेणं समयेणं सावत्थी नामं णयरी होत्था, वण्णओ। तीसे णं सावस्थिए णयरीए बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए तत्थ णं कोहए णाम . चेहए होत्था, वण्णओ।xxx। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे, जाव परिसा पडिगया xxxi -भग० श १५/सू १, ८/पृ० ६५४, ६५५ उस काल उस समय में श्रावस्ती नामक नगरी थी। श्रावस्ती नगरी के उत्तर-पूर्व में कोष्ठक नामक उद्यान था। उस काल-उस समय में, श्रमण भगवान महावीर स्वामी वहाँ पधारे । यावत् परिषद् धर्मोपदेश सुनकर चली गई। (ख) शंख श्रावक के समय में तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नाम नगरी होत्था-चण्णओ। कोहए चेहए-वण्णओ। x x x । तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। परिसा जाव पज्जुवासह Ixxx। -भग श १२/७१/सू १-२ पृ. ५३८ उस काल उस समय में श्रावस्ती नाम की नगरी थी। कोष्ठक नामक उद्यान था। उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी श्रावस्ती पधारे। परिषद् वंदनार्थ गई । यावत पर्युपासना करने लगी। ( उणतीसवां वर्ष) (ग) कौशाम्बी नगरी से श्रावस्ती नगरी पदार्पण इत्याख्याय ततो नाथः श्रावस्ती विहरन् ययौ। तस्यां च समवासार्षीदुद्याने कोष्ठकाभिधे ॥ ३५४ ॥ –त्रिशलाका० पर्व ० १./सर्ग ८ कौशाम्बी नगरी से विहारकर श्रावस्ती नगरी पधारे। वहाँ नगर के बाहर कोष्ठक नामक उद्यान में पधारे। (घ) श्रावस्त्यामन्यदा पुर्या भगवान् विहरन् ययौ। तत्र कोष्ठकसंशे चोपवने समवासरत् ॥ ३३१॥ तत्र वानन्दतुल्यद्धिा ह्यासीन्नन्दिनीपिता । २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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