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________________ ( १४६ ) बाद में भगवान ने गौतम और दूसरों को बोध करने के लिए द्रुमपत्रीय अध्ययन की व्याख्या की । गुरु भक्ति पर गणधर गौतम का उदाहरण जाणतो वि तमत्थं भत्तीए सुणेज्ज गुरु- समीवंमी । गणहारि-गोयमो विव समत्थ- सुयनाण जलरासी ॥ गुरु के समीप रहने से भक्ति से जानकारी होती है - जैसे गौतम स्वामी ( गणधर ) ने समस्त श्रुतरत्न रूपी जलराशि को भगवान की भक्ति से प्राप्त किया । २. जंबूस्वामी - एक प्रसंग (क) एसो एत्थोस प्पिणीए अंतिमकेवली । एदम्हि णिव्वुइ गदे विष्णुआइरियो सयल सिद्धतिओ उवसमियचउकसायो दिमित्ता इरियस्स समप्पिय दुषालसंगो देवलोअं गदो । पुणो एदेण कमेणऊवराइयो गोवद्धणो भदबाहुत्ति पदे पंच पुरिसो लीए सयलसिद्ध तिया जादा । एवेसि पंचपि खुदके वलीणं कालो वस्सस १०० । तदो भद्दबाहुभयवंते सग्गं गदे सयल सुदणाणस्स वोच्छेदो जादो । कसागापा० भाग १/२ टीका /१ अस्तु जंबूस्वामी इस भरतक्षेत्र सम्बन्धी अवसर्पिणीकाल में पुरुष परम्परा की अपेक्षा अन्तिम केवली हुए हैं । - धर्मो पृ. १२८ इन जंबुस्वामी के मोक्ष चले जाने पर सकल सिद्धान्त के ज्ञाता और जिन्होंने चारों कषाय को उपशमित कर दिया था ऐसे विष्णु आचार्य, नंदीमित्र आचार्य को द्वादशांग समर्पित करके अर्थात् उनके लिए द्वादशांग का व्याख्यान करके देवलोक को प्राप्त हुए । पुनः इसी क्रम से पूर्वोक्त दो, और अपराजित, गोवर्द्धन तथा भद्रबाहु इस प्रकार ये पाँच आचार्य पुरुष परम्परा क्रम में सकल सिद्धान्त के ज्ञाता हुए । इन पाँचों ही श्रुतलियों का काल सौ वर्ष होता है । स्वर्ग चले जाने पर सकल श्रुतरुन का विच्छेद हो गया । Jain Education International (ख) श्री गौतमः सुधर्माख्य श्रीजम्बूस्वामिरन्तिमः । महावीरे त्रयः केवलिनोऽप्यमी ॥ मोक्षंगते तदनन्तर भद्रबाहु भगवान For Private & Personal Use Only - वीरच० अधि १ । श्लो ४१ www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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