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________________ ( १ ) ग्लानिभाजो ब्रु वन्तोऽपि जीवसत्त्वेन गामिनः । तपोभिरुअरीक्षा भवन्ति खलु साधवः ॥१९९॥ तत्तु श्रुत्वा वैश्रवणस्तस्य स्थौल्यं विभावयन् । स्वस्मिन्नपि विसंवादि वयोऽस्येत्यहसन्मनाक् ॥२०॥ इन्द्रभूतिमनोज्ञानी ज्ञात्वा तद्भावमब्रवीत्। नांगकाय प्रमाणं स्यात् किं त्वहो ध्याननिग्रहः॥२०१॥ -त्रिशलाका पर्व १०/सर्ग: यहाँ गौतम स्वामी भरतेश्वर के द्वारा कराये हुए नंदीश्वर द्वीप के चैत्य जैसे चैत्य में प्रवेश किया। और उनमें स्थित चौबीस तीर्थंकरों के अनुपम विम्ब को उन्होंने भक्ति से वंदना की। बाद में चैत्य में से निकल कर गौतम गणघर एक मोटे अशोक वृक्ष के नीचे बैठे। वहाँ अनेक सुर-असुर और विद्याधर उनको वंदना की। बाद में गौतम स्वामी उनकी योग्यतानुसार धर्मदेशना दी। और उनके द्वारा पछे गये संदेह को तर्क शक्ति से केवली की तरह दूर किया। देशना देते हुए प्रसंगोपात उनको जनाया कि यदि साधुओं का शरीर शिथिल हो गया हो और वे ग्लानि प्राप्तकर जाने की मात्र जीव सत्ता से धूजते-धूजते चले ऐसा हो जाता है । गौतम स्वामी का ऐसा वचन सुनकर वैश्रवण ( कुबेर ) उनके शरीर की स्थूलता देखकर वह वचन उनमें ही अघटित जानकर जरा हंसा। उस समय मनः पर्यव ज्ञानी इन्द्रभूति उनके भाव को जानकर बोले कि-मुनिपन में कुछ भी शरीर की कृशता का प्रमाण नहीं है परन्तु शुत्रध्यान से आत्मा का निग्रह करना चाहिए । - यह सिद्धांत में प्रमाण भी है। तत्पीनत्वं कृशत्वं वा न प्रमाणं तपस्विनाम् । शुत्रध्यानं हि परमपुरुषार्थनिबन्धनम् ॥२३८॥ एतदर्थ पुंडरीकाध्ययनं गौतमोदितम् । जग्राहैकसंस्थयापि श्रीदसामानिकः सुरः ॥२३९॥ प्रतिपेदे स सम्यक्त्त्वं नत्वा वैश्रवणः पुनः । स्वाभिप्रायपरिज्ञानान्मुदितः स्वाश्रयं ययौ ॥२४०॥ –त्रिशलाका पर्व १०/सर्ग ६ इस कारण हे सभाजनो। तपस्वियों को कृशपन होता है या पुष्टपन होता है-ऐसा कोई प्रमाण नहीं है । शुभध्यान ही परमपुरुषार्थ का कारणभूत है । इस प्रकार गौतम स्वामी के द्वारा कथित पुंडरीक का अध्ययन के पास बैठा हुआ श्रमण का सामानिक देव एक निष्ठा से श्रवण किया। १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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