SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३१ ) तए ॥ सा देवाणंदा माहणी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्या णिसम्म हट्टतुट्ठा समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं x x x णमंसित्ता एवं वयासी-एवमेयं भंते ! एवं जहा उसभदनो तहेव जाच धम्ममाइक्खियं ॥१५२।। तएणं समणे भगवं महावीरे देवाणंदं माहणि सयमेव पवावेइ, पव्वावित्ता सयमेव अज्जबंदगाए अज्जाए सीसिणित्ताए दलयइ ।।१५३॥ तएणं सा अज्जचंदणा अज्जा देवाणंदं माहणि सयमेव मुंडावेति, सयमेव सेहावेति । एवं जहेव उसभदत्तो तहेव अज्जचंदणाए अज्जाए इमं एयारूवं धम्मियं उवदेसं सम्म संपडिवज्जइ, तमाणाए तहगच्छइजाव संजमेण संजमति ॥१५४|| तएणं सा देवाणंदा अज्जा अज्जचंदणाए अज्जाए अंतियं समाइयमाइयाई एक्कारस अंगाइ अहिज्जइ, सेसंतं चेव xxx सव्वदुक्खप्पहीणा ॥१५५।। -भग० श /उ ३३/प्र० १५० से १५५/पृ० ४३६ से ४३८ श्रमण भगवान महावीर स्वामी से धर्म सुनकर और हृदय में धारण करके देवानंदा ब्राह्मणी हृष्ट ( आनंदित ) और तुष्ट हुई। श्रमण महावीर स्वामी की तीन वार प्रदक्षिणा कर यावत् नमाकार कर इस प्रकार बोली-'हे भगवान् | आपका कथन यथार्थ है। इस प्रकार ऋषभदत्त ब्राह्मण के समान कहकर निवेदन किया कि हे भगवन् । मैं प्रवज्या अंगीकार करना चाहती हूँ। तब श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने देवानंदा को स्वयमेव दीक्षा दी। दीक्षा देकर आर्यां चंदना को शिष्या रूप में दिया। इसके पश्चात् आर्या चंदना ने आर्या देवानंदा को स्वयमेव प्रवजित किया, स्वयमेव मंडित किया, स्वयमेव शिक्षा दी । देवानन्दा ने ऋषभदत्त ब्राह्मण के समान आर्या चंदना के वचनों को स्वीकार किया और उनकी आज्ञा का पालन करने लगी। यावत् संयम में प्रवृत्ति करने लगी। देवानंदा आर्या ने चंदना आर्या के पास सामायिकादि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। यावत् बह देवानंदा आर्या सभी दुःखों से मुक्त हुई । देवानन्दर्षभदत्तावथ नत्वैवमूचतुः। आवां विरक्तौ संसारवासादस्मादसारतः ॥१९॥ देहि जंगमकल्पद्रो! दीक्षां संसारतारणीम् । तरीतुं तारयितुं च कोऽपरस्त्वदृते . क्षमः ॥२०॥ अस्त्वेतदिति नाथेन प्रोक्तौ तौ धन्यमानिनौ। - ईशान्यां दिशि गत्वोमांचक्रतुर्भूषणादिकम् ॥२१॥ हुई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy