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________________ ( १२६ ). त्रिश्च प्रदक्षिणीकृत्य प्रणम्य च जगद्गुरुम् । श्रद्धावानृषभदत्तो यथास्थानमुपाविशत् ॥५॥ देवानंदा प्रभुं नत्वार्षभदत्तस्य पृष्ठतः। शुश्रुषमाणोध्र्वज्ञाऽस्थादानन्दविकचानना ॥६॥ स्तनाभ्यां प्राक्षरत्स्तन्यं रोमाञ्चश्चाभवत्तनौ । तदा च देवानन्दायाः पश्यन्त्याः परमेश्वरम् ॥७॥ तथाविधां च तां प्रेक्ष्य जातसंशयविस्मयः । स्वामिनं गौतमस्वामी पप्रच्छेति कृताञ्जलिः ॥८॥ उत्प्रस्तवा निर्निमेषदृष्टिदेववधूरिव । देवानन्दा तवाऽऽलोकात्सूनोरिव कथं प्रभो ! ।।९।। अथाख्यद्भगवान् वीरो गिरा स्तनितधीरया। देवानां प्रिय ! भो देवानन्दायाः कुक्षिजोऽस्म्यहम् ॥१०॥ दिवश्च्युतोऽहमूषितः कुक्षावस्या द्वयशीत्यहम् । अज्ञातपरमार्थापि तेनैषा वत्सला मयि ॥१९॥ देवानन्दर्षभदत्तौ मुमुदाते निशम्य तत् । सर्वा विसिमिये पर्षत्तादृगश्रुतपूर्विणी ॥१२॥ क्व सूनु स्त्रिजगन्नाथः क्व चाचां गृहिमात्रको। इत्युत्थाय ववन्दाते दम्पती तौ पुनः प्रभुम् ॥१३।। पितरौ दुःप्रतीकारावीदृग्धीभगवानपि। तावुहिश्य जनांश्चापि विदधे देशनामित्ति ॥१४॥ –त्रिशलाका पर्व १०/सर्ग ८ भव्यजनों के अनुग्रहार्थ ग्राम, आकर, नगर आदि में विहार करते हुए श्री वीरप्रभु अन्यदा ब्राह्मणकुंडग्राम पधारे। उसके बाहर बहुशाल नाम उद्यान में देवताओं ने तीन गढ वाले समवसरण की रचना की। उसमें प्रभु पूर्व सिंहासन पर पूर्वाभिमुख विराजे। और गौतम आदि गणधर और देव स्वयं के योग्यस्थान में बैठे। सर्वज्ञ को आया हुआ जानकर नगर जन वहाँ आये। उनके साथ देवानंदा और ऋषभदत्त भी आये। श्रद्धावान ऋषभदत्त भगवान को वंदन कर योग्यस्थान में बैठे। देवानन्दा भी भगवान को नमस्कार कर ऋषभदत्त के पीछे आनंद प्रफुल्लित मुख से देशना सुनने बैठी। उस समह प्रभु को देखते ही देवानंदा के स्तन में से दूध झरने लगा। और शरीर में रोमाञ्च प्रगट हुआ। ऐसी स्थिति को देखकर गौतम स्वामी के संशय और विस्मय उत्पन्न हुमा । फलस्वरूप दोनों हाथ जोड़कर भगवान को पछा . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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