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________________ ( १२० ) फिर बहुतसी कुब्जाओं, चेटिकाओं, वामनियों, वडभियों, बब्बरी, पयाउसिया, जोणिया,पण्हवि, इसिगिणिआ. वासिइणिया, लासिया, लएसिया, सिंहली, दमिली, आरबी, पुलंदी, पक्कणी, बहली, मुरुडी, सबरी और पारसी-इन नाना देश-विदेश की निवासिनियों-जोकि अपनी स्वामिनी के इंगित (मुखादि के चिह्न या चेष्टा) चिन्तित ( सोची हुई बात ) और प्रार्थित ( = अभिलषित बात) की जानकार थी, जो अपने देश की वेषभूषाको पहने हुए थीं, उन चेटियों के समूह वर्षधर ( = नाजर, कृत नपुंसक), कंचुकीय ( = अंतःपुर के रक्षक) और महत्तरग ( अंतःपुर के रक्षकों के अधिकारी) से घिरी हुई, अंतःपुर से निकली। जहाँ प्रत्येक के यान खड़े थे, वहाँ आयी और जुते हुए यात्राभिमुख यानों पर सवार हुई। अपने परिवार से घिरी हुई चंपानगरीके मध्य से होकर निकली, जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था-वहाँ आयीं। ___ दृष्टि योग्य स्थानसे श्रमण भगवान महावीर के तीर्थकरत्वसूचक छत्रादि अतिशय देखें । तब यानोंको ठहराये और उनसे नीचे उतरौं । बहुत सी कुब्जाओं से यावत् घिरी हुई, जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे, वहाँ आयौं अभिगम सहित उनके सन्मुख गई । यथा १-सचित द्रव्योंको छोड़ना, २-अचित्त द्रव्योंको नहीं छोड़ना, ३-विनयसे देह को झुकाना, ४-चक्षुः स्पर्श होनेपर हाथ जोड़ना, और ५-मन को एकाग्र करना । फिर श्रवण भगवान महावीर की तीन बार आदक्षिणा-प्रदक्षिणा की। बन्दना की। नमस्कार किया। कूणिक राजाको आगे रखकर, विनयसे करबद्ध होकर पर्युपासना करने लगीं। चंपा में ( बारह प्रकार की परिषद् में ) महावीर का उपदेश : तए णं समणे भगवं महावीरे कूणियस्स रणो भिभसारपुत्तस्स सुभहापमुहाणं देवीणं तीसे य महतिमहालियाए परिसाए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अणेगसयाए अणेगसयवंदाए अणेगसयवंदपरिवाराए ओहबले अइबले महब्बले अपरिमियबलवीरियतेयमाहप्पतिजुत्ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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