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________________ ( 15 ) भी जो कुछ प्राप्त हो उसे संदर्भ एवं हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित करना। इस कार्य के लिए उन्होंने आगम ग्रन्थ उनकी टीकाएँ, श्वेताम्बर-दिगम्बर आगमेतर ग्रन्थ कुछ बौद्ध एवं ब्राह्मण्य ग्रन्थ एवं परवी कालीन कोश अभिधान आदि का भी उपयोग किया है । वर्धमान जीवन कोश प्रथम भाग में भगवान महावीर के गर्भप्रवेश से परिनिर्वाण तक का जीवनवृत्त संकलित किया गया है । भाग २ में उनके २७ या ३३ भवोंका विवरण है जो कि दिगम्बर व श्वेताम्बर परम्परा से लिया गया है। इससे तुलनात्मक अध्ययन सुगम हो जाता है । इसके अतिरिक्त इस में भगवान महावीर के पांचो कल्याणक, नाम व उपनाम, उनकी स्तुतियाँ, समवसरण, दिव्यध्वनि, संघविवरण, इन्द्रभूति आदि ग्यारह गणधरों का पृथक-पृथक् विवरण आदि संकलित है । आर्य चन्दना की भी जीवन प्रसंग है। वर्धमान जीवन कोश तृतीय खण्ड ---जो आप के सामने है। इसमें वर्धमान ( महावीर ) के चतुर्विध संघ के प्रमाण का निरूपण, भगवान महावीर के तीर्थ में तीर्थ कर गोत्र उपार्जन करने वाले जीवों का विवेचन, भगवान महावीर के परिनिर्वाण के बाद स्थिति, वीर स्तुति, उनके समय के साधुओं, श्रमणों, निग्रन्थों की स्थितियाँ का विवेचन है। इसके अतिरिक्त भगवान के शासन में पार्श्वनाथ की परम्परा, भगवान महावीर और भावी तीथ कर महापद्म की समान आचार-विचार धारा, उनके समय के कूणिक राजा आदि का विवेचन है। सर्वज्ञ अवस्था के विहार स्थल तथा देवों का आगमन-आदि का निरुपण है। इतना ही नहीं इस कोश में भगवान महावीर के समसामयिकी घटना-१. परिषद् में श्रेणिक चेल्लणा देवी को देखकर साधु-साध्वियों द्वारा निदान, निदान तथा निदान रहित संयम का फल २. निह्नववाद तथा कूणिक और चेटक के साथ युद्ध का विवेचन है। उस समय के रथमसल संग्राम व महाशिला कंटक संग्राम का विवेचन भी है । भगवान महावीर के सम्मुख सुर्याभ देव द्वाराकृत नाटक का भी विवेचन है । अस्त इस कोश में भगवान महावीर समय के प्रवाद का भी उल्लेख किया है । पावपत्यीय अणगार, भगवान महावीर के समय के व्यक्ति विशेष, प्रत्येक बुद्ध, भगवान् के सर्वज्ञ अवस्था में गौशालक का प्रसंग, जंबू स्वामी, उत्तर पुराण से पूर्वभव प्रसंग, वर्धमान के चतुर्मास आवास स्थल आदि का विवेचन है । संपादक द्वय ने जैन आगमों, सिद्धान्त ग्रन्थों के जितने अवतरणों का अवलोकन व संकलन किया है, यह बहुत श्रमसाध्य एवं अपूर्व है । ग्रन्थ बहुत ही महत्वपूर्ण एवं उपयोगी बन गया है । ग्रन्थ में चर्चित अनेक पहलुओं पर स्वतन्त्र निबन्ध लिखे जा सकते हैं। पर दुर्भाग्यवश अाज हमें बुद्ध व निगंठ नातपुत्त को छोड़कर अन्य किसी श्रमणनायक का संघ व साहित्य उपलब्ध नहीं होता हैं । बौद्ध त्रिपिटिकों में जैन आचार, तत्वज्ञान, महावीर का व्यक्तित्व, उनकी संघीय स्थिति आदि की वृहत व्यौरा प्रस्तुत हुआ है, जो ऐतिहासिक दृष्टि से एवं शोध व समीक्षा की दृष्टि से बहुत महत्व का है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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