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________________ भूमिका यह युग विधिवद्ध व शोधका है। अतः जब कोई विद्वान किसी विषय पर शोध करता है तो वह किसी परम्परा से प्राप्त तथ्य पर ही निर्भर नहीं रहता चाहे वह तथ्य ग्रन्थ, शिलालेख, या कहावत रूप से प्राप्त हुआ हो । जबकि सरल विश्वासी मानव जिस परम्परापर वह विश्वास रखता है उसके शास्त्र इतिहास पुराण को निर्विवाद रूप से सत्य मान लेता है तब आधुनिक अन्वेषक उस विषय पर जहाँ भी जो कुछ भी प्राप्त हो सके उसे प्राप्त करने की एवं प्राप्त तथ्यों से विशद रूप से निरीक्षण व विभिन्न दृष्टि कोणों से परखने का प्रयास करता है। ज्ञान-विज्ञान के किसी भी विषय या शाखा जिसमें विद्वानों की रूची जाग्रत हो सकती है उस विषय या शाखा से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के तथ्य ग्रंथों की खोज, प्रकाशन उनकी सहजतया प्राप्ति तथा विशद् अध्ययन शोध की इस असीमित प्रवृत्ति तथा तथ्य को समग्र रूप से यथाक्रम समझने के प्रयास को प्रोत्साहित किया है। शोध खोज के लिए प्राप्त विभिन्न प्रकार के विभिन्न विषयों से सम्बन्धित ग्रन्थों की कोई कमी नहीं है। सत्य तो यह है कि इसने सत्य के अन्वेषक के कार्य को और भी जटिल बना दिया है समय सापेक्ष बना दिया है। अतः इनके कार्य को सहज और सुगम करने के लिए विभिन्न प्रकार संदर्भ ग्रन्थों की बड़ी उपयोगिता है। इस संदर्भ ग्रन्थों से भी अधिक उपयोगिता है वर्गीकृत कोष की। __ जैन विद्या के क्षेत्र में अभिधान राजेन्द्र कोश, जैनेन्द्र सिद्धांत कोश, जैसे कोश ग्रन्थ एवं ग्रंथ पंजिओं, प्रशस्ति संग्रह, हस्तलिखित ग्रन्थों की सूचियाँ, पारिभाषिक शब्द सुचियाँ, ऐतिहासिक व्यक्ति एवं स्यानों का अभिधान, शिलालेख संग्रह व अन्य ऐतिहासिक प्रमाण जैसे वंशावलियाँ विज्ञप्ति पत्र आदि प्रकाशित हो चुके हैं। ये सभी संदर्भ ग्रन्थ जैन विद्या के अन्वेषकों के लिए बड़े सहायक होते है। किन्तु वर्गीकृत कोश ग्रन्थ जैसा कि प्रस्तुत ग्रन्थ हमारे हाथों में है, उपरोक्त सभी ग्रन्थों से कुछ भिन्न है । जैन धर्म दर्शन और पुराण के वर्गीकृत कोश ग्रंथों के रचना क्षेत्र में शायद स्वर्गीय मोहनलाल जी बाँठिया ही प्रथम व्यक्ति है जिन्होंने इसके प्रयोजन को समझकर उसे क्रियान्वित करने का प्रयास किया है । सौभाग्य से इन्हें इस कार्य के लिए पंडित श्रीचन्दजी चोरड़िया जैसे समर्पित व समर्थ व्यक्ति का सहयोग भी प्राप्त हो गया। इस कार्य के लिए करीब एक हजार विषयों की योजना बनाई गई जिसमें अभी तक लेश्या कोश (सन् १९६६) व क्रियाकोश (सन् १९६६), वर्धमान जीवन कोश भाग १ (सन् १९८०), वर्धमान जीवन कोष भाग २ (सन् १९८४), मिथ्यात्वीका आध्यात्मिक विकास जो कोश के समकक्ष था (सन् १६७७) में प्रकाशित हो चुके हैं । एवं वर्धमान जीवन कोश का तीसरा भाग आपके सम्मुख है । वर्धमान जीबनकोश के प्रकाशन में उनका उद्देश्य यह था कि चौबीसवें तीर्थकर भगवान महावीर के जीवन (५६६-५२७ ई० पू०) से सम्बन्धित समस्त तथ्य जहाँ से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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