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________________ ( ६६ ) (घ) स-पुन्वंग - धारीण मुक्काचईणं । पसिद्धाइँ गुत्ती-सयाई जईणं ॥ दहेक्कूणयाई तहिं सिक्खुयाणं । समुम्मिल्ल - सन्यावही - चक्खुयाणं ॥ घत्ता-मोहें लोहे चत्तउ तिहिं सएहि संजुत्तउ । एक्कु सहसु संभूयउ खम-दम-भूसिय-सवउ ॥७॥ पंचेव चउत्थ - णाण - धरहं। सत्तेव सुकेवलि - जइर - घरहं॥ चत्तारि सयई वाई - वरहं । दिय-सुगय-कविल-हरणय हरहं॥ -वीरजि० संधि २/कड ७/८ भगवान के तीन सौ शिष्य ऐसे थे, जो समस्त पणे एवं अंगों के ज्ञाता थे, सप्रसिद्ध थे एवं अवतों के त्यागी अर्थात महावती थे। भगवान के नौ सौ शिष्य ऐसे थे जिनके सर्वावधि ज्ञानरूपी चक्षु खुल गये थे अर्थात् जो सर्वावधि ज्ञानधारी थे। भगवान के संघ में एक हजार तीन सौ ऐसे मुनि भी थे जो मोह और लोभ के त्यागी तथा क्षमा ओर दम आदि गुणों से भूषित थे। भगवान के संघ में पाँच सौ चतुर्थ-ज्ञानधारी अर्थात् मनः पर्यय ज्ञानी तथा सात सौ केवलज्ञानी थे। उनके चार सौ ऐसे श्रेष्ठवादी मुनि थे जो द्विज, सुगत (बुद्ध) कपिल और हर (शिव) इनके सिद्धान्तों का खंडन करने में समर्थ थे। (च) चतुर्दशपूर्वभृतां श्रमणानां शतत्रयम् । त्रयोदशशत्यवधिशानिनां सप्तशत्यथ ॥४३७॥ वैक्रियलब्ध्यनुत्तरगतिकेवलिनां पुनः । मनोविदां पंचशती वादिनां तु चतुःशती ॥४३८॥ –त्रिशलाका• पर्व १०/सर्ग १२ ____(छ) समणस्सणं भगवओ महावीरस्स तिन्नि सया चोहसपुवीणं अजिणाणं जिणसंकासाणं सन्वफ्खरसन्निवाईणं जिणो विव अवितहं वागरमाणाणं उक्कोसिया चोहसपुवीणं संपया होत्था ।xxx। तेरससया ओहिनाणीणं अतिसेसपत्ताणं उक्कोसिया ओहिनाणीणं संपया होत्था ।xxx। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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