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________________ ( ५७ ) आये हुए कोष्टक चैत्य में आकर उतरे। वहाँ योग्य अभिग्रह धारण कर संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए रहने लगे। नोट--दीर्घ निकाय में कुमार श्रमण के स्थान पर कुमार काश्यप (पाली-कुमार कस्सप) का नाम है। काश्यप का भिक्षु समुदाय पाँच सो की संख्या में कहा है । कुमार काश्यप को श्रमण गौतम के ( गौतम बुद्ध के ) श्रावक की तरह वर्णन किया है। (बौद्ध शासन में जो त्यागी होता है वह श्रावक और जो गृहस्थ होता है वह उपासक) ये कुमार काश्यप सीधे ही सेयविया नगरी में आते हैं वहाँ केशी कुमार-श्रमण श्रावस्ती आने के बाद सेयविया की ओर जाते हैं । आजन्म ब्रह्मचारी होने से वे कुमार श्रमण कहे जाते है । .६ केशीकुमार श्रमण तस्स लोगपईवस्स, आसी सीसे महायसे । केसीकुमार समणे, विजाचरण-पारगे॥ -उत्त• अ २३/गा २ लोक में दीपक के समान अर्थात् संसार के संम्पूर्ण पदार्थों को अपने ज्ञान द्वारा प्रकाशित करनेवाले उन पार्श्वनाथ भगवान के ज्ञान और चारित्र के पारगामी महायशस्वी केशीकुमार श्रमण शिष्य थे। ओहिणाणसुए बुद्ध, सीससंघसमाउले । गामाणुगाम रीयंते, सावत्थि पुरमागए । -उत्त० अ २३/गा ३ मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान से युक्त तत्त्वों को जानने वाले, शिष्यों के परिवार सहित ग्रामानुग्राम विचरते हुए वे केशीकुमार श्रमण श्रावस्ती नगरी पधारे । अह तेणेव कालेणं धम्मतित्थवरे जिणे । भगवं वद्धमाणित्ति, सव्वलोगम्मि विस्सुए। -उत्त० अ २३/गा ५ अथ, उसी समय, धर्म तीर्थ की स्थापना करनेवाले, राग-द्वेष को जीतनेवाले भगवान् वर्द्धमान स्वामी समस्त संसार में, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी तीर्थकर के रूप में प्रसिद्ध थे। .७ वैशालिक श्रावक पिंगलक निगन्थ तएणं भगवं गोपमे खंदयं कञ्चायणसगोत्तं अदूरागयं जाणित्ता खिप्पामेव अब्भुढे इ, अन्भु द्वेत्ता खिप्पामेव पच्चुवगच्छइ । xxx से पूणं तुम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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