SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५६ ) वार आदक्षिण - प्रदक्षिणा की । वंदना - नमस्कार किया । वंदना नमस्कार करके इस प्रकार निवेदन किया - हे भगवन्! मैं आपके पास चार याम रूप धर्म से पाँच महाव्रत रूप धर्म को अंगीकार करना चाहता हूँ । भगवान ने सप्रतिक्रमण पांच महाव्रत ग्रहण कराये । क्रमशः कालान्तर में मोक्ष पधारे । ५. पाश्र्वापत्य केशीकुमार श्रमण तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावश्चिज्जे केसी नाम कुमारसमणे जातिसंपणे कुलसंपण्णे बलसंपण्णे रूवसंपण्णे विणयसंपण्णे नाणसंपण्णे दंसणसंपण्णे वरित संपणे लज्जासंपण्णे लाघवसंपण्णे लज्जा-लाघवसंपण्णे ओयंसी तेयंसी वच्चंसी । जसंसी जियकोहे जियमाणे जियमाए जियलोहे जियणिद्दे जितिदिए जियपरीस हे जीवियासमरणभयविप्पमुक्के तबप्पहाणे गुणप्पहाणे करणष्पहाणे पहाणे निग्गहप्पहाणे निच्छयप्पहाणे अजवप्पहाणे महवप्पहाणे लाघवप्पहाणे खंतिप्पहाणे गुत्तिप्पहाणे मुत्तिप्पहाणे विज्जप्पहाणे मंतप्पहाणे । पहाणे वे पहाणे नयष्पहाणे नियमप्पहाणे सच्चपहाणे सोयप्पहाणे नापहाणे दंसणपहाणे वरितप्पहाण्णे ओराले ... [ पृ० १४७ प० १ ] चउदसपुच्ची चणाणोवगए पंचहि अणगारसहिं सद्धिं संपरिबुडे पुष्वाणुपुवि वरमाणे गामाणुगामं दूइजमाणे सुहसुहेणं विहरमाणे जेणेव सावत्थी नयरी जेणेव कोट्टए खेइए तेणेव उवागच्छइ, सावत्यी नयरीए बहिया कोइए चेहए अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिन्हइ उग्गहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरs | -राय० सू० १४७ उस समय वहाँ श्रावस्ती नगरी में – पावपत्य केशी नामक कुमार श्रमण भी आये केशी कुमार श्रमण जातवान्, कुलीन, बलिष्ठ, विनयी, ज्ञानी, सम्यग्दर्शनी, चारित्रशील, लज्जावान, ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी और यशस्वी थे । उन्होंने क्रोध - मान माया और लोभ पर जीत को प्राप्त हो गये थे । निद्रा, इन्द्रिय और परीषह पर काबू किये हुए थे। उन्हें जीवन की तृष्णा या मरण का भय नहीं होता था । इनके जीवन में तप, चरण, करण, निग्रह, सरलता, कोमलता, क्षमा, निर्लोभता ये सर्व गुण मुख्य रूप में थे । तथा वे श्रमण, विद्यावान् मांत्रिक ब्रह्मचारी और वेद तथा नय के ज्ञाता थे । उनको सत्य, शौचादि सदाचार के नियम प्रिय थे । तथा वे चतुर्दशपूर्वधारी और चार ज्ञान के धारक थे । ऐसे केशी कुमार श्रमण स्वयं के पाँच सौ भिक्षु शिष्यों के साथ क्रमशः क्रमशः ग्रामानुग्राम विहार करते हुए सुख पूर्वक विचरण करते हुए श्रावस्ती नगरी के बाहर ईशान कोण में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy