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________________ ( ४ ) (ग) त्रयोदशशतान्येव मुनयोऽवधिभूषिताः।। -वीरवर्धमानच अधि १६/श्लो २०६ (घ) समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तेरस सया ओहिनाणीणं अतिसेसपत्ताणं उक्कोसिया ओहिनाणीणं संपया होत्था । कप्प० सू १३८/पू० ४४ (च) त्रयोदशशत्यवधिज्ञानिनांxxxi -त्रिशलाका० पर्व १०/सर्ग १२/श्लो ४३७ उत्तरार्ध (छ) दहेक्कूणयाई तहिं सिक्खुयाणं । समुम्मिल्ल-सव्वावही चक्खुयाणं ॥ -वीरजि० संधि २/कड ८ भगवान के नौ सौ शिष्य ऐसे थे जिनकी सर्वांवधि ज्ञानरूपी चक्षु खुल गये थे अर्थात जो सर्वावधि ज्ञान-धारी थे। .१८ मनापर्यवज्ञानी(क) शतानि पंच संपूज्याश्चतुर्थशालोचनाः ॥३७७॥ -~~-उत्तपु० पर्व ७४ (ख) पंचेव चउत्थ-णाण-धरह -वीरजि० संधि २/कड ८ (ग) चतुर्थज्ञानिनः पूज्याः शतपंचप्रमाः प्रभोः॥ -वीरवर्धमानच० अधि १६/श्लो २११/पूर्वार्ध ___ पाँच सौ पूजनीय मनः पर्यव ज्ञानी थे। विपुलमति मनःपर्यवज्ञानी(घ) समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पंचसया विउलमईणं अड्ढाइज्जेसु दीवेसु दोसु य समुद्देसु सण्णीणं पंचिंदियाणं पज्जत्तगाणं जीवाणं मनोगए भावे जाणमाणाणं उक्कोसिया विउलमई संपया होत्था । -कप्प० सू १४१/पृ ४४ (च) श्रमणस्य भगवतो महावीरस्स xxx पंच शतानि ५०० विपुलमतीनां -आव० निगा २८६/मलय टीका श्रमण भगवान महावीर के ५०० विपुलमति मनः पर्यव ज्ञानी थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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