SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (ग) सप्तशत्यथ, वैक्रियलध्यनुत्तरगति केवलिनां पुनः । -त्रिशलाका पर्व १०/सर्ग १२/श्लो ४३८ पूर्वार्ध अनुत्तर विमान में उत्पन्न होने वाले ७०० शिष्य थे। (घ) अनुत्तरोपातिक संपदा समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तेवम्नं अणगारा संवच्छरपरियाया पंचसु अनुत्तरेसु महइमहालएसु महाविमाणेसु देवत्ताए उववन्ना। -सम० सम ५३/सू३/पृ०८८८ __ श्रमण भगवान महावीर के त्रेपन साधु एक वर्ष की दीक्षा-पर्याय वाले होकर अनुत्तर नाम के महाउत्सव के स्थान रूप महाविमान में देवरूप में उत्पन्न हुए । (च) भगवान की शासन-संपदाअनुत्तर विमानवासी देवों में उत्पन्न साधुओं की संख्या । उसहतियाणं सिस्सा वीससहस्सा यणुत्तरेसु गदा । कमसो पंचजिणेसुं तत्तो बारससहस्साणि ॥ तत्तो जिणेसुं एकारसहस्सयाणि पत्तेक्कं। पंचसु सामिसु तत्तो एक्क के दससहस्साणि ॥ अट्ठासीदिसयाणि कमेण सेसेसु जिणवरिदेसुं। गयणणभअट्ठसगसग दोअंककमेण सव्वपरिमाणं ॥ -तिलोप० अधि ४/गा १२१५ से १२१७ शेष जिनेंद्रों के–मल्लिनाथ से वर्द्धमान स्वामी तक के जिनेंद्रों के क्रम से ८८०० अनुत्तर विमान में गये हैं। १७. अवधिज्ञानी(क) (श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य ) त्रयोदश शतानि १३०० अवधिज्ञानिनां । __ --आव० निगा २८६/मलय टीकाश्रमण भगवान महावीर के १३०० अवधिज्ञानी थे । (ख) सहस्रमेकं त्रिज्ञानलोचनास्त्रिशताधिकम् । -उत्तपु० पर्व ७४/श्लो ३७६/पूर्वार्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy