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________________ ( ३७ ) श्रमण भगवान् महावीर और शासन संपदा - .१४ वादी - संख्या (क) समणस्स णं भगवओ महावीरस्स वत्तारि सया वाईणं सदेवमणुया सुरम्भि लोगम्मि वाए अपराजियाणं उक्कोसिया बाइसंपया होत्था । श्रमन भगवान महावीर के देव, मनुष्य और असुर, ( परिषद् ) लोक में वाद में पराजित न हो सके ऐसे चार सौ वादियों की उत्कृष्ट संपदा थी । (ख) समणस्स णं भगवओ महावीरस्स वत्तारि सया वादीणं सदेवमणुया सुराए परिसाए अपराजियाणं उक्कोसिता वातिसंपदा हुत्था । - ठाण० स्था ४/४/ सू ६४८ ( ग ) x x x चत्वारि शतानि ४०० वादिनाम् । (घ) x x x वादिनां तु चतुः शती (छ) चतुःशतानि संप्रोक्तास्तत्रानुत्तरवादिनः - त्रिशलाका० पर्व १० / सर्ग १२ / श्लो ४३८ (च) समणस्स णं भगवओ महावीरस्स वत्तारि सया वाईणं सदेवमणुयासुराए परिसाए वाए अपराजियाणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था । - कप्प० सू १४२ / पृ० ४४ (ज) चत्तारि सयई बाई- वरई (झ) चतुःशतप्रमाणा -सम० सम ४०० - आव० निगा २८६ / मलय टीका Jain Education International दिय - सुगय-कविल-हर-णय-हरहं ॥ - उत्तपु० /पर्व ७४ / श्लो ३७८ पूर्वार्ध भवन्त्यनुत्तरवादिनः || २११ - वीरजि० संधि २ / कड ८ For Private & Personal Use Only भगवान् के चार सौ ऐसे श्रेष्ठवादी थे जो द्विज, सुगत (बुद्ध) कपिल और हर (शिव) इनके सिद्धांतों का खंडन करने में समर्थ थे । - वीरवर्धमानच० अधि १६ www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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