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________________ ( ३३ ) (छ) सर्वे पिण्डीकृताः सहस्राणि चतुर्दश । संयताः श्रीवर्धमानस्य रत्नत्रितयभूषिताः ॥ २१२ -वीरवर्धमानच० अधि १६ (ज) चतुर्दसशहस्राणि पिंडिताः स्युमुनीश्वराः । -उत्तपु० पर्व ७४ (श्लो ३७८) और ये सब मिलकर चौदह हजार साधु श्री वर्धमान स्वामी के शिष्य परिवार में थे। सब रत्नत्रय से विभूषित थे। १०. साध्वी-संख्या (क) समणस्स भगवओ महावीरस्स छत्तीसं अजाणं साहस्सीओ होत्था। -सम° सम ३६ सू३ श्रमण भगवान महावीर के ३६००० हजार साध्वियों थी। वे सब उत्तम तप और मल गुणों से युक्त थीं और भगवान् के चरणकमलों को नमस्कार करती थीं। (ख) छत्तीस सहास संजईहिं -वीरजि० संघिर/कडक (ग) आर्यिकाश्चन्दनाद्याः षट्त्रिंशत्सहस्रसंमिताः। __ नमन्ति तत्पदाजौ सत्तपोमूलगुणान्विताः ॥ २१३ -वीरवर्धमानच० अधि १६ (घ) चंदनाद्यार्यिकाः शून्यत्रयषड्वह्निसंमिता -उत्तपु० पर्व ७४ ( श्लो ३७६ ) पूर्वाध (च) समणस्स भगवओ महावीरस्स अजचंदणापामोक्खाओ छत्तीसं अज्जियासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जिसंपया होत्था। -कप्प० सू १३४/पृ० ४३ (छ) षट्त्रिंशतु सहस्राणि साध्वीनां शान्तचेतसाम् || ४३६ ॥ -त्रिशलाका• पर्व १०/सर्ग १२ (ज) छत्तीसं च सहस्सा अज्जाणं संगहो एसो। -आव निगा २८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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