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________________ .( २१ ) ___ उन भगवंतों के कहीं पर किसी प्रकार का प्रतिबंध ( अटकाव, रोक या आसक्ति का कारण ) नहीं था। वह प्रतिबंध ( आसक्ति) चार प्रकार का कहा गया है-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भावसे । (ग) व्यओ णं सचित्ताचित्त-मीसिएसु दवेसु,खेत्तओ गामे वा णयरे वारणे वा खेत्ते वा खले वा घरे वा अंगणे वा, कालओ समए वा आवलियाए वा जाच अयणे वा अण्णतरे वा दीह-काल-संजोगे, भावओ कोहे वा माणे वा मायाए वा लोहे वा भए वा हासे वा एवं तेसि ण भवइ । सण भवई। . ओव० सू० २८ द्रव्य से सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्यों में, क्षेत्र से ग्राम, नगर, जंगल, खेत, खला, घर और आंगन में, काल से समय, आवलिका यावत अयन और अन्य भी दीर्घकालीन संयोग में और भाव से क्रोध, मान, माया, लोभ, भय या हास्य में उनका ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं था। (घ) से णं भगवंतो वासावासवज्जं अट्ठ गिम्हहेमंतियाणि मासाणि गामे एगराइया णयरे पंचराइया -ओव० सू० २६ वे अनगार भगवंत, वर्षावास को छोड़कर, ग्रीष्म और शीतकाल के आठ महिनों तक, गाँव में एक रात और नगर में पाँच रात रहते थे । (ङ) वासीचंदणसमाणकप्पा समलेह कंचणा समसुहदुक्खा इहलोगपरलोगअप्पडिबद्धा संसारपारगामी कम्मणिग्घायणट्ठाए अब्भुठ्ठिया विहरति । [ ( अण्डप ( अंडजे ) इ वा पोयए (बोंडजे) इ वा उग्गहिए इ वा पग्गहिए वा) जंणं जंणं दिसं। इच्छंति । णं तं णं विहरंति सुइभूया लघुभूया अणप्पग्गंथा ।।] ___-ओव० सू० २४ वे वासी चंदन के समान कल्पवाले थे । मिट्टी के ढेले और सोने को एक समान ( उपेक्षणीय ) समझनेवाले तथा सुख और दुःख को समभाव से सहने वाले थे। -वे इहलोक और परलोक संबंधी आसक्ति से रहित और संसार, पारगामी ( चतुर्गति रूप संसार के पार पहुँचने वाले ) कर्मनाश के लिए तत्पर होकर विचरण करते थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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