SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्धमान जीवन-कोश माहेन्द्र स्वर्ग से च्युत होकर कुमार्ग के प्रकट करने के फलस्वरूप समस्त अधोगतियों में जन्म लेकर उसने भारी दुःख भोगे । इस प्रकार त्रस-स्थावर योनियों में असंख्यात वर्ष तक परिभ्रमण करता हुआ बहुतही श्रान्त हो गया। खेद-खिन्न हो गया। .१५ स्थावर परिव्राजक भव में (क) संसरिय थावरो रायगिहे चउतीस बंभलोगम्मि । -आव निगा ४४३ पूर्वार्ध मलयटीका-गमनिका-माहेन्द्राच्च्युतः संसृत्य कियन्तमपि कालं संसारे स्थावरो नाम ब्राह्मणो राजगृहे समुत्पन्न इति, तत्र च चतुस्त्रिंशत्पूर्वशतसहस्राण्यायुष्कं, परिव्राजक आसीत् , मृत्वा ब्रह्मलोकेजघन्योत्कृष्ट स्थितिर्देवः सञ्जातः + + +। (ख) मृत्वा माहेन्द्रकल्पेऽभूत् स सुरो मध्यमस्थितिः । च्युत्वा भ्रान्त्वा भबं राजगृहेऽभूत्स्थावरो द्विजः ।।८३।। चतुस्त्रिंशत्पूर्वलक्षायुष्कः सोऽपित्रिदंड्यभूत् + + –त्रिशलाका० पर्व १० । सर्ग १ (ग) तओ विचुओ पुणो संसारमाहिडिऊण रायगिहे णगरे थावरो नाम बंभणो समुप्पण्णो । तस्थ य चोत्तोसपुप्वलक्खे आउयमणुवालिऊण पज्जन्ते परिव्वायगत्तणेण मरिऊण बंभलोए। मज्झिमहिइओ देवो समुप्पण्णो च उप्पन्न० पृ०६७ भगवान महावीर के जीव ने माहेन्द्र देवलोक से च्युत होकर-कुछ काल संसार में भ्रमण करके-राजगृह नगरी में स्थावर नाम ब्राह्मण के रूप में जन्म लिया तथा परिब्राजक दीक्षा स्वीकार की और चौतीसलाख पूर्व की आयु सम्पूर्ण करके ब्रह्मलोक में समुत्पन्न हुआ। (घ) अथेह मागधे देशे पुरे राजगृहाभिधे । ब्राह्मणः शाण्डिलिर्नाम्ना तस्य पाराशरी प्रिया ॥२॥ भवभ्रमणतः श्रान्तः सोऽतिदुःखी ततस्तयोः । स्थावराख्यः सुतो जातो वेदवेदाङ्गपारगः ।। ३ ।। -वीरच अधि ३ (च) परिभ्रम्य परिश्रान्तस्तदन्ते मागधाह्वये । देशे राजगृहे जातः सुतोऽस्मिन्वेदवेदिनः ॥ २ ॥ शाण्डिल्याख्यस्य मुख्यस्य पारशों स्वसंज्ञया । स्थावरो वेदवेदाङ्गपारगः पापभाजनम् ।। ८३ मतिः श्रतं तपः शान्तिः समाधिस्तत्त्ववोक्षणम् । सर्व सम्यक्त्वशून्यस्य मरीचेरिव निष्फलम् ।। ८४ ।।। परिव्राजकदीक्षायामासक्ति पुनरादधत् । -उत्तपु० पर्व ७४ (छ) भरइखेत्ते खेयरहँ पियंकरे मगह-विसइ रायहरे सुहंकरे हुवउ विप्प चरु संडिल्लायणु जण्ण विहाणाइय गुणभायणु तहोसंजाय कंत पारासरि ण पच्चक्ख समागय सुरसरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy