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________________ वर्धमान जीवन-कोश . उस पुण्यात्मा भरत के पुण्योदय से सुख की खानि, पुष्य-विभूषित और दिव्य लक्षणों वाली धारिणी नाम की रानी थी । उन दोनों के वह पुरूरवा भील का जीव देव स्वर्ग से चयकर रूपादि गणों से मंडित मरीचि नाम का पुत्र ऊत्पन्न हुआ। वह क्रम से अपने योग्य अन्न-पानादि से और भूषणों से वृद्धि को प्राप्त होकर, अनेक शास्त्रों को पढ़कर और अपने योग्य सम्पदा को प्राप्त करके पूर्वोपार्जित पुण्यकम के उदय से अपने पितामह के साथ हो वनक्रीडा आदि के द्वारा नाना प्रकार के भोगों को भोगता रहा। किसी समय नीलांजनां देवी को नृत्य देखने से बृषभदेव स्वामी ने समस्त भोगों में, देह में और राज्य आदि में उत्कृष्ट वैराग्य को प्राप्त होकर और पालकी पर बैटकर इन्द्रादि के साथ वन में जाकर और अन्तरग-बहिरंग दोनों प्रकार के परिग्रह को अपनी मुक्ति के लिए छोड़कर संयम को ग्रहण कर लिया। उस समय केवल स्वामि-भक्ति के लिए स्वाभिभक्त परायण कच्छ आदि चार हजार राजाओं के साथ मरीचि ने भी शोघ्र द्रव्य-संयम को ग्रहण कर लिया और नग्नवेष धारण करके वह मुग्ध बुद्धि शरीर में वृषभ स्वामी के समान हो गया। किन्तु अन्तरंग में इस दीक्षा का कुछ भी रहस्य नहीं जानता था। (ब) मरिईवि सामिपासे विहरइ तवसंजमसमग्गो। सामाइअमाईअं इक्कारसमा उ जाव अंगाओ। उज्जुत्तो भत्तिगओ अहिन्जिओ सो गुरुसगासे ।। -आव मूल भाष्य गा ३६। उत्तरार्ध, ३७ मलय टीका-xxxमरीचिरपि स्वामिपार्श्वे विइरति तपःसंयमसमप्रः, स च समायिकादिकं एकादशमंगं यावत् उद्युक्तः क्रियायां भक्तिगतो भगवति श्रुते वा अधीतवान् स गुरुसकाश इत्युपन्यस्त गाथार्थः ऋणभनाथ भगवान् के पास मरीचि दीक्षित होकर तप और संयम से विहरण करने लगा। (ट) मिरीइवि सामाइयादि एक्कारस अंगागि अहिज्जितो। -आव० निगा ३४८।मलय टीका दीक्षित होकर मिरीची ने सामायिकादि एकारस अंग का अध्ययन किया । सामाइअमाईअं इक्कारसमा उ जाव अंगाओ । -आव मूल भाष्य गा ३७पूर्वाध (ठ) (मिरिई ) अण्णया अचिन्तसत्तित्तणओ कम्मपरिणईए, अवस्समावित्तणओ तस्स भावस्स, जाणन्तस्स वि उम्मग्गदेसणापरिणामफलं तस्सुम्मग्गदेसणापरिणामो संवुत्तो। पयट्टावियंच तेण कुलिंग भागवयदरिसणं । उवसंत्तय सीसते साहूणं समप्पेइ । 'गिलाणपडिजागरन्ति एगं पवावेमित्ति चिन्तयन्तस्स उवडिओ कविलाहिराणो रायपुत्तो। साहिओ य अस्थि धम्मो, साहुदंसणेवि अस्थि त्ति । तओ एएण दुब्भासिएण बद्धं दुहविवागं कम्म। पब्बाविओ य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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