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________________ वर्धमान (महावीर) के पूर्वभव .०० / ४ पूर्वभव विवेचन .०० अनन्त संसार - भ्रमण अनन्त संसार भ्रमण के पश्चात् भगवान महावीर के जीव का सर्वप्रथम मिथ्यात्व से निगम : (क) एतच्च सर्वं भगवन्महावीरलक्षणद्रव्याधी नमतस्तस्यैव प्रथमतो मिथ्यात्वादिभ्यो निर्गममभिधित्सुराह-- आव० निगा० १४२ । टीका विप्पणट्ठाणं । वद्धमाणस्स || पंथ किर देसित्ता साहूणं अडवि सम्मत्तपढमलंभो मलयटीका -- पन्थानं 'किले' त्याप्तवादे देशयित्वा - कथयित्वा साधुभ्यः, सूत्र े षष्ठी प्राकृतत्वात्, 'अडवि' त्ति प्राकृतत्वादेवात्र सप्तम्या लोपः अटव्यां पथो विप्रनष्टेभ्यः, परिभ्रष्टेभ्यः, पुनस्तेभ्यः एव देशनां श्रुत्वा सम्यक्त्वं प्राप्तः, एवं सम्यक्त्व प्रथमलाभो बोद्धव्यो वर्द्धमानस्येति गाथाक्षरार्थः । - आव० निगा० १४३ अटवी में पथभ्रष्ट साधुओं को सही पथ दिखाने से तथा उन साधुओं की देशना श्रवण करने से भगवान महावीर के जीव को मिथ्यात्वादि से निर्गमन होकर, सम्यक्त्व की पहली बार प्राप्ति हुई । (ख) घत्ता - बहु- दुरिय-महल्ले मिच्छा सल्लें विविह- देह - संघारइ | भरसर-णंदणु संसय-हय- मणु चिरूहिंडिवि संसारइ ॥५॥ - वीरजि० संधि १ । कडवक ५ भगवान महावीर का जीव अनेक जन्मों में अनेक प्रकार के शरीर धारण किये और वह मरीचि भरतेश्वर पुत्र होकर भी मन में सराय के आघात से चिरकाल तक संसार में भ्रमण करता रहा । Jain Education International * For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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