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________________ ३२८ वर्धमान जीवन - कोश . ३ भगवान् महावीर से दीक्षा ग्रहण - इतश्च चन्दना तत्र शतानीकगृहस्थिता । पश्यन्ती यान्तमायान्तं दिविषज्जनमम्बरे । १६१ ।। स्वामिनः केवलोत्पत्तिनिश्चयाद्वतकांक्षिणी । त्रिदशैरदवीयोभिर्निन्ये श्री वीरपर्ष दि ११६२ ॥ सात्रिः प्रदक्षिणीकृत्य नत्वा चोपास्थित प्रभुम् । प्रव्रज्यार्थं नृपाऽमात्यपुत्र्यो बढ्योऽपरा अपि ॥ १६३ ॥ चन्दनां धुरि कृत्वाताः स्वयं प्राव्राजयत् प्रभुः । अस्थावयच्छ्रावकत्वे नृन्नारीश्च सहस्त्रश ॥१६४|| - त्रिशलाका १० पर्व सर्ग ५ भगवान् महावीर की द्वितीय देशना अपापा नगरी में थी उस समय शतानिक राजा के घर में रही हुई चंदन बाला ने आकाश मार्ग में देवों का आवागमन देखा । उसके कारण वर्धमान महावीर को केवल ज्ञान समुत्पन्न हुआ है - ऐसा निश्चय होने के कारण उसको व्रत ग्रहण करने की इच्छा हुई । तत्पश्चात् नजदीक में रहे हुए किसी देव ने उसे श्री वीर प्रभु की परिषद् में उठा कर रखा। चंदनबाला ने भगवान् को वदन— नमस्कार किया और दीक्षा ग्रहण के लिए तत्पर हुई तथा भगवान् के सम्मुख खड़ी हो गयो । उस समय अन्य अन्य भी अनेक राजा तथा अमात्यों की पुत्रियाँ दीक्षा ग्रहण करने के लिए तैयार हुई । भगवान् ने चंदना को आगे कर उन सबको दीक्षा ग्रहण करवायी । उस समय हजारों नर-नारियों ने श्रावक के बारह व्रतों को ग्रहण किया .४ भगवान् महावीर की मुखिया - चंदना साध्वी बम्हनकुज्जणाभा धम्मसिरी मेहसेणअयणंता । तह रतिसेणा मीणा वरुणा घोसाय धरणाय । चारणवरसेणाओ पम्मासव्वसिसुव्वदाओ वि । हरिसेणभावियाओ कुंथूमधुसेणपुव्वदत्ताओ । मग्गणिक्खिसुलोया चंदणणामाओ उसहपहुदीणं एदा पढमगणीओ एक्केका सव्वविरदीओ ॥ -तिलोप० अधि ४ /गा १५७८ से १९८० ब्राह्मी यावत चंदना नामक ये एक एक आर्थिकायें क्रम से ऋषमादिक के तीर्थ में रहनेवालो आर्यिकाओं के समूह में मुख्य थी । अतः भगवान् महावीर के समस्त साध्वियों में आर्य चंदना प्रमुख थी । .५ चंदना आर्या को केवलज्ञान की उत्पत्ति— एवंच बोधयन् भव्यानम्भोजानीव भास्करः । भूयो जगाम कौशाम्बी नगरीं परमेश्वरः ॥ ३३७ ॥ प्रमोश्वरमयां वन्दनायेन्दु भास्करौ । स्वाभाविक विमानस्थौ तस्यां युगपतुः ||३३८|| तयोर्विमान तेजोभिर्नभम्युद्योतिते सति । लोकम्तथैय तत्राऽस्थात् कौतुक्रव्यग्रमानसः ॥३३६॥ विज्ञ: योत्थानसमयं चंदना तु प्रवर्तिनी । वीरं प्रणाम्य वसतिं स्वां ययौ सपरिच्छदा ||३४०|| मृगावती तु तत्रस्थमार्तण्डोद्यततेजसा । नाज्ञासीद्रात्रिमायातां तत्रैवाऽऽस्था द्दिनभ्रमात् ||३४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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