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________________ वर्धमान जीवन कोश ३०२ .६ तत्थ परेण जे थावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए दण्डे णिक्खित्ते, ते तओ आउं विप्पजहंंति, विप्पजहित्ता तत्थ परेणं चेव जे तसा थावरा पाणा, जेहिं समणोवासगरस आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, तेसु पच्चायंति । तेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खाय भवइ । ते पाणावि जाव अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ । - सूय० श्रु २ अ७ / सू २६ वहां जो मर्यादित भूमि के बाहर स्थावर प्राणी है जिनको श्रावक ने अर्थ दण्ड देना नहीं छोड़ा है किन्तु अर्थ दण्ड देना छोड़ दिया है। वे उस शरीर की आयु को छोड़ देते हैं. छोड़कर वहां से दूर देश में जो त्रस स्थावर प्राणी है जिनको श्रावक ने व्रत ग्रहण के दिन से मरण पर्यंत दण्ड देना वर्जित किया है। उनमें उत्पन्न होते हैं । जिनमें श्रावक का सुप्रत्याख्यान होता है वे प्राणी भी कहलाते हैं और त्रस भी कहलाते हैं अतः श्रावक के व्रत को निर्विषय कहना न्यायसंगत नहीं है । .S तत्थ परेण जे तसथावरा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, ते तओ आउ विप्पजति विप्पजहित्ता तत्थ आरेणं जे तसा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दण्डे णिक्खित्ते, तेसु पच्चायंति । तेहिं समणोवासगस्स सुपरचकखायं .c भवइ । ते पाणा वि जाव अयंपि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ । - सूय० श्रु २/अ ७ / सू २६ मर्यादित भूमि के बाहर जो त्रस स्थावर प्राणी है - जिनकी हिंसा करने के श्रमणोपासक के आमृत्यु त्याग हैं । जीव आयु समाप्त करते हैं और काल करके मर्यादित भूमि के उन त्रस प्राणियों में उत्पन्न हो जाते हैं - जिनको हिंसा मृत्यु पर्यन्त श्रमणोपासक ने छोड़ दी है । अर्थात् उनमें श्रावक का सुप्रत्याख्यान होता है । वे प्राणी भी कहे जाते हैं और सभी कहे जाते हैं अतः श्रावक के व्रत को निर्विषय बताना न्यायसंगत नहीं है । तत्थ परेणं जे' तसथावरा पाणा जेहिं समणोवासगहस आयाणसो आमरणंताए दण्डे णिक्खित्ते, ते तओ आउ बिप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ आरेणं जे थावरा पाणा, जेहिं समणोत्रासगस्स अट्ठाए दण्डे अणिक्खित्ते अणट्टाए दण्डे णिक्खित्ते, तेसु पच्चायंति । तेहिं समणोवास गस्स सुपचचकखायं भवइ । ते पाणा वि जाव अपि भे उवएसे गोणेयाउए भवइ । - सूय० श्रु · / अ ७ / सू २६ वहां जो वे त्रस और स्थावर प्राणी हैं श्रावक के द्वारा ग्रहण किये हुए देश परिमाण से अन्य देशवर्ती है जिनको श्रावक ने व्रतारम्भ से लेकर मरण पर्यन्त दण्ड देना छोड़ दिया है वे उस आयु को छोड़ देते हैं और जो छोड़कर वहां जो समीपवर्ती स्थावर प्राणी हैं जिनको श्रावक ने अर्थ दण्ड देना नहीं छोड़ा है किन्तु अनथ दण्ड देना छोड़ दिया है। उनमें वे उत्पन्न होते हैं जिनको भावक अर्थ दण्ड देन नहीं छोड़ता है किन्तु अनर्थ दण्ड देना छोड़ देता है वे प्राणी भी कहलाते हैं और त्रस भी कहलाते हैं इसलिए श्रावक के व्रत को निर्विषय कहना न्यायसंगत नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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