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________________ २६२ वर्धमान जीवन कोश हंता वएज्जा | तरसण सव्वपाणेहिं सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं सव्वसत्तेहिं दंडे णिक्खित्ते । णेति । से जे से जीवे जल्स परेणं सव्वपाणंहिं सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं सव्वसत्तेहिं दंडे णो णिक्खित्ते । से जे से जीवे जस्स आरेणं सव्वपाणेहिं सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं सव्त्रत्तेहिं दंडे णिक्खित्ते । से जे से जीवे जस्स इयाणि सव्वपाणेहिं सव्वभूएहिं सजीवहिं सव्वसत्तेहिं दंडे णो णिक्खिते भवइ | परेण अस्संजए, आरेणं संजए, इयाणि अस्संजए । सव्वजीवेहिं सव्वसत्तेहिं दंडे णो णिक्खित्ते भवइ । भगवान् गौतम - जो निर्ग्रन्थ धर्म पृच्छा के योग्य हों। आयुष्मान् निर्ग्रन्थ ! गृहपति पुत्र उस प्रकार के कुल में आकर [ == जन्म लेकर ] धर्म सुनने आ सकते हैं । हां आ सकते हैं ? क्या उस प्रकार के धर्म को कहना चाहिए ? हां ? कहना चाहिए क्या वे तथा प्रकार धर्म को सुनकर, समझकर इस प्रकार कह सकते हैं कि यह निर्ग्रन्थ प्रवचन हो सत्य, अनुत्तर, केवल ज्ञानी से कथित, परिपूर्ण, संशुद्ध, नैयायिक युक्तियुक्त, शल्यकर्त्तक - आत्मकंटकों का नाशक, सिद्धमार्ग, मुक्तिमार्ग, निर्याण मार्ग, निर्वाण मार्ग, अविथ = मिथ्याभाव से रहित असन्दिग्ध और सर्वदुःख प्रदाण मार्ग है - जिसमें स्थित जीव सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिर्वाण पाते हैं और सभी दुःखों का अन्त करते हैं - ऐसे उम (निर्ग्रन्थ प्रवचन ) को आज्ञा के अनुसार हम चलें ठहरें बैठें, सोयें खायें बोलें सावधानी से रहें और उत्थान के लिए उठें - सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व के मंयम से ( अपने को ) संयमित करें क्या वे ऐसा कर सकते हैं । अस्संजयस्स णं सव्वपाणेहिं सव्वभूपहिं सेवमायाणह नियंठा । सेवमायाणियव्वं । - सूय० श्रु २/अ ७ सू १८ ( उनके पास ) गृहपति या हाँ कह सकते हैं ? क्या तथा प्रकार (व्यक्तियों ) को दीक्षित, मुण्डित, शिक्षित और ( मोक्ष मार्ग में ) उपस्थित कर सकते हैं ? हाँ ! कर सकते हैं । क्या सब जीवों की हिंसा से निवृत्त हो सकते हैं ? हाँ! हो सकते हैं। Jain Education International क्या वे कुछ समय श्रमण रहकर, पुनः गृहस्थ बन जाते हैं ? हाँ! कई बन जाते हैं । क्या उस समय उनका ( लिया हुआ ) प्राणीघात का प्रत्याख्यान टिक सकता है ? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता है ? For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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