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________________ वर्धमान भीवन-कोश २५१ .७ आर्य सुधर्म का आयुष्य (क) थेरेणं अजसुहम्मे एक वाससयं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे। -सम० सम १०० सू ५ पृ०६०६ स्थविर आर्य सुधर्मा एक सौ वर्ष का सर्वायु पालनकर सिद्ध हुए यावत् सर्व दुःखों से रहित हुए । टीका- एवं 'थेरेवि अज्जसुहमे' त्ति आर्यसुधर्मों महावीरस्य पंचमो गणधरः सोऽपिवर्षशतं सर्वायुः पालयित्वा सिद्धस्तथा च तस्यागारवासः पंचाशद्वर्षाणि छद्मस्थपर्यायो द्विचत्वारिंशत्केवलिपर्यायोऽष्टौ, भवति चैतद्राशित्रयमिलने वर्षशतमिति । ___ सुधर्म स्वामी का गृहवास पचास वर्ष, छमस्थ पर्याय बयालीस वर्ष और केवलि पर्याय आठ वर्ष—इस प्रकार सुधर्मा स्वामी की आयुष्य १०० वर्ष की थी। (ख) मासं पाओवगया सव्वेऽवि य सव्वलद्धिसम्पन्ना । वज्जरिसहसंधयणा समचउरंसा य संठाणे ।। -आव० निगा ६५६ निर्वाण से पूर्व आर्य सुधर्मा एक मास तक पादोपगमन आमरण अनशन में रहे। नियुक्तिकार ने सभी गणधरों के लिए इसी प्रकार के अंतिम तप का उल्लेख किया है। .८ सुधर्मा गणधर का एक विर्वचन (क) तेणंकालेणं ते णं समएणं चंपा नामं नयरीहोत्था, वण्णओ। तीसे णं चंपाए णयरीए बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए पुण्णभद्दे नामं चेइएहोत्था। तत्थ णं चंपाए णयरीए कोणिए णामं राया होत्था, वण्णओ । ते णं काले णं, ते णं समए णं, समणम्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहन्मे नाम थेरे, जातिसंपण्णे, कुलसंपण्णे, बलम्वविणयणाणदंसणचरित्तलाघवसंपण्णे; ओयंसी, तेयंसी, बच्चसी, जसंसी; जियकोहे, जियमाणे, जियमाए, जियलोहे. जिईदिए, जियनिद्दे, जियपरिसहे; जीवियासमरणभयविप्पमुक्के, तवप्पहाणे, गुणप्यहाणे, एवं करणचरणनिग्गहणिच्छयअज्जवमद्दवलाघवखतिगुत्तिमुत्ति १०, विज मतबंभवेयनयनियमसञ्चमोयणाणसण २०, चरित्त; ओगले, घोरे, घोरव्यए, घोरतबस्सी, घोरबंभचेग्वासी; उच्छृढशरीरे, संखित्त विउलतेयल्ले से, चोदसपुव्वी, चउण,णोवगत, पंचहिं अणगारमएहिं मद्धिं संपग्वुिडं, पुव्वाणपुचि चरमाणे, गामाणुगामे दूतिज्जमाणे, सुहसुहेणं विहरमाणे; जेणेव चंपा नयरी, जेणेव पुण्णभद्र चेतिए तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता, अहापडिरूवं उन्गह, उरिगण्हित्त, मंजमेण तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरति ।। सूत्रम-४ ।। --णाया० श्रुत० १ अ० १ उस काल अर्थात् इस अवमपिणी काल के चोथे आरे में और उस समय में अर्थात कुणिक राना के समय में चंपा नामक नगरी थी। उम चंपा नगरी के बाहर, उत्तरपूर्व दिककोण में अर्थात् ईशान भाग में पूर्णभद्र नामक चैत्य था। उस चंग नगरी में कणिक नामक राजा था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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