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________________ २२८ वर्धमान जीवन-कोश .८ गौतम द्वारा क्षमा याचना : तए णं से भगवं गोयमे, समणस्स भगवओ महावीरस्स 'तह' त्ति एयमढें विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ-जाव पडिवज्जइ, आणंदं च समणोवासयं एयमटुंखामेइ। -उवा० अ १/सू ८२ - गौतम ने भगवान् महावीर के उक्त कथन को विनयपूर्वक स्वीकार किया और उस दोष की आलोचना की तथा प्रायश्चित के रूप में आनन्द श्रावक से क्षमा-याचना की। .६ महाशतक श्रावक और गौतम गणधर .१ गौतम का आगमन : (क) तए णं से भगवं गोयमे समणस्स भगवओ महावीरस्स 'तह' त्ति एयमट्ट विणएणंपडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता रायगिहं नयरं मझं-मज्झेणं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता जेणेव महासतगस्स समणोवासगस्स गिहे जेणेव महासतए समणोवासए तेणेव उवागच्छइ ! --उवा० अ८/सू ४७ सदनन्तर श्री भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर को इस बात को (रेवती पत्नी द्वारा दूसरी तथा तीसरी बार ऐसा कहने पर महाशतक क्रुध हो गया। उसने अवधिज्ञान का प्रयोग करके रेवती का भविष्य देखा और उसने नरक में उत्पन्न होने की बात कही।) यही ठीक है, कहकर--विनयपूर्व स्वीकार किया, स्वीकार करके वहाँ से निकले, निकलकर राजगृह नगर के बीच में प्रवेश किया। प्रवेश करके जहाँ महाशतक श्रमणोपासक का घर था-जहाँ महाशतक श्रमणोपासक था-वहाँ आये। ... (ख) तए णं से महासतए समणोवासए भगवं गोयमं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्ट जाव हियए भगवं गोयमं वंदइ नमसइ। -उवा० अ ८/सू ४८ महाशतक भगवान् गौतम को आते देखकर प्रसन्न और संतुष्ट हुआ और उन्हें वंदन-नमस्कार किया। (ग) तए णं से भगवं गोयमे महासतयं समणोवासयं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे एवमाइक्खइ, भासइ, पण्णवेइ, परूवेइ-“नो खलु कप्पइ देवाणुप्पिया ! समणोवासगरस अपच्छिम जाव वागरित्तए। तुमे र्ण देवाणुप्पिया! रेवई गाहावइणी संतेहिं जाव वागरिआ।” तं गं तुम देवाणुप्पिया। एयरस ठाणस्स आलोएहि जाव पडिवजाहि ।” -उवा० असू ४६ तदनन्तर भगवान् गौतम महाशतक श्रमणोपासक से इस प्रकार बोले- "हे देवानुप्रिय ! इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर ने ऐसा कहा है, भाषण किया है, प्रतिपादन किया है, प्ररूपित किया है कि .हे देवानुप्रिय नहीं.. कल्पना श्रमणोपासक को–अंतिम संलेखनाधारी को यावत् ऐसा कहना-तुमने देवानुप्रिय ! रेवती गाथापत्नी को.. तथ्य रूप वचन कहे-अतः हे देवानुप्रिय ! तुम इस स्थान की आलोचना करो यावत् प्रायश्चित् करो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org:
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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