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________________ वर्धमान जीवन-कोश जिनको श्रद्धा, संशय और कुतूहल उत्पन्न हुआ है-ऐसे गौतम स्वामी अपने स्थान से उठकर श्रमण भगवान् महावीर के पास आये और श्रमण भगवान महावीर स्वामी को तीन बार प्रदक्षिणा करके वंदन-नमस्कार किया। भगवान् के न अति नजदीक न अतिदूर किन्तु यथोचित स्थान पर रहकर भगवान् के सम्मुख विनयपूर्वक हाथ जोड़कर इस प्रकार बोले विवेचन-'जायसडढ, अर्थात् गौतम स्वामी को श्रद्धा-अर्थ तत्त्व जानने की इच्छा उत्पन्न हुई। 'जायसंसए' उन्हें संशय पैदा हआ कि भगवान् ने 'चलमाण चलिए', अर्थात् चलते हुए को चलित-चला हुआ कहा है तो वर्तमान कालिक प्रयोग भूतकालिक कसे कहा गया है। इसका निर्णय कर। इस प्रकार निर्णय करने की बुद्धिरुप संशय पैदा हुआ। 'जायकोऊहल्ले' उन्हें कोतुहल उत्पन्न हुआ कि भगवान् इसका समाधान किस प्रकार फरमावेंगे। .१२ केशी और गौतम-संवाद : [केशी कुमार श्रमण-भगवान् पार्श्वनाथ के संतानीय शिष्य थे। तथा ग्रामानुग्राम विचरते हुए श्रावस्थी नगरी पधारे। वहाँ उनका मिलन गणधर गौतम से हुआ और गौतम स्वामी से संवाद-प्रतिसंवाद हुआ। तथा चतुर्याम और पंचयाम धर्म के भेद का स्पष्टीकरण हुआ। अनगार केशी कुमार ने पंचयाम धर्म को भाव से अंगीकार किया। भगवान् जब ५८ वर्ष के थे, उस समय उनके शिष्य गौतम और भगवान पार्श्व के शिष्य केशीमें वाद हुआ था। उसमें धर्म, वेशभूषा आदि अनेक विषयों पर चर्चा हुई थी। बहुत सम्भव है कि पिटकों में यही घटना काल की विस्मृति के साथ उल्लिखित हुई हो। .१ केशी-गौतम मिलन : (क) जिणे पासित्ति णामेणं, अरहा लोगपूइओ। संबुद्धप्पा य सव्वण्णू , धम्म-तित्थयरे जिणे ॥१॥ तस्स लोगपईवस्स, आसि सीसे महायसे। केसीकुमार समणे, विज्जाचरण - पारगे ॥२॥ ओहिणाणसुए बुद्धे, सीससंघसमाबले। गामाणुगामं रीयंते, सावत्थि पुरमागए ॥३॥ तिंदुयं णाम उज्जाणं, तिम्म णगरमंडले। फासुए सिज्ज-संथारे, तत्थ वासमुवागए ॥४॥ अह तेणेव कालेणं, धम्मतित्थयरे जिणे। भगवं वद्धमाणित्ति, सव्वलोगम्मि विस्सुए ॥५॥ तस्स लोगपईवस्स, आसि सीसे महायसे। भगवं गोयमे णाम, विज्जाचरण-पारगे ॥६॥ बारसंविऊ बुद्धे, सीससंघसमाउले। गामाणुगामं रीयंते, सेऽवि सावत्थिमागए ।।७।। कोठूगं णाम उज्जाणं, तम्मि णगरमंडले। फासुए सिज्जसंथारे, तत्थ वासमुवागए Et केसीकुमार समणे गोयमे य महायसे । उभओऽवि तत्थ विहरिंसु, अल्लीणा सुसमाहिया ॥६॥ उभओ सीस-संघाणं, संजयाणं तवस्सिणं। तत्थ चिंता समुप्पण्णा गुणवंताण ताइणं ॥१०॥ -उत्त० अ २३/गा १ से १० (ख) तंजहा-पाससामिणो तेवीसइम-तित्थयरस्स केसिनामो अणेग-सीस-गण-परिवारो ससुरासुरनरिंद-पणय-पव-पंकओ बोहिंतो भव्व-कमलायरे, नासिंतो मिच्छत्तमन्धयारं, अवणेतो मोह-निइं, मासकप्पेण विहरमाणो समोसरिओ सावत्थीए नयरीए मुणि-गणपाओगे फासुए तिंदुगाहिहाणे उज्जाणे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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