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________________ वर्धमानजीवन-कोश २०६ (ख) तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ समोसरणं जाव परिसा पडिगया l x x x ६॥ ततेणं से भगवं गोयमे दोच्चंपि छटुक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए जाव पाडलिसंडं णगरं दाहिणिल्लेणं दुवारेणं अणुप्पविसति ।८।। -विवा० श्रु १/अ ७/सू ६, ८ तदनन्तर भगवान् गौतम ( प्रथम बार प्रवेश करने के पश्चात् ) दूसरी बार षष्ठ क्षमण के पारणे में भी अर्थात लगातार दो दिन के उपवास के अनन्तर पारणा के निमित्त प्रथम पौरुषी-प्रहर में यावत् पाटलिषंड नगर में दक्षिण दिशा के द्वार से प्रवेश करते हैं। (ग) तए णं से भगवं गोयमे तच्चपि छट्ठक् खमण पारणगंसि तदेव जाव पाडलिसंडं नयरं पञ्चत्थिमिल्लेणं दुवारेणं अगुपविसमाणे तं चेव पुरिसं पासइ-कच्छुल्लं ॥६॥ तएणं से भगवं गोयमे चउत्थं पि छटुक्खमणपारणगंसि तहेव जाव पाडलिसंडं नयरं उत्तरेणं दुवारेणं अणुपविसमाणे तं चेव पुरिसं पासइ-कच्छुल्लं ॥१०॥ गौतम-तीसरी बार षष्ठ क्षमण के पारणे में उसी नगर के पश्चिम द्वार से, चौथीवार षष्ठ क्षमण के पारणे में निमित्त पाटलिषंड नगर के उत्तर दिशा के द्वार से प्रविष्ट हुए। नोट : - चारों बार एक पुरुष को कंडू के रोग से अभिभूत हुआ देखा। (घ) तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नामं नयरे होत्था । x x x ॥२॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे ररिसा निग्गया । x x x ||१|| तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगपओ महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंदभूई नामं अणगारे गोयमगोत्तेणं जाव संवित्तविउलतेयलेसे हटुंछटणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ ॥१२॥ -विवा० श्रु १/अ २/सू ८, ११, १२ उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर वाणिज्य ग्राम नगर में पधारे। उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर के प्रधान शिष्य इन्द्रभूति अनगार तेजो लेश्या को संक्षिप्तकर अपने अन्दर धारण किये हुए हैं तथा षष्ठ तप-बेले-बेले की तपस्या करते थे। .११ गौतम की जिज्ञासा : तते णं भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोउहल्ले संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोउहल्ले समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नको उहल्ले उट्ठाए उठेति, उट्टेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता णच्चासन्नेणातिदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलियडे पज्जुवासमाणे एवं वयासी..... ||१०|| -भग० श १/३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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