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________________ वर्धमान जीवन-कोश १८५ -08-गौतम गोत्रीय स्थविर अकंपित तथा हारितायन गोत्रीय स्थविर अचलभाता-इन दोनों स्थविरों ने प्रत्येक ने तीन-तीन सो श्रमणों को वाचना दी थी। १०/११.-कोडिन्न गोत्रीय स्थविर आर्य मेइज्ज ( मेतार्य ) और स्थविर प्रभास-इण दोनों स्थविरों ने तीन-तीन सौ श्रमणों को वाचना दी थी। ___ उपरोक्त कारण से हे आर्यों ! ऐसा कहा जाता है कि श्रमण भगवान महावीर के नव गण और ग्यारह गणधर थे । गोदास आदि नौ गण का संबंध ग्यारह गणधर से नहीं है परन्तु गोत्री आर्य भद्रबाहु स्थविर के शिष्य गौदास आदि शिष्य परम्परागत से है । (ग) चुलसीइ पंचणउई बिउत्तरं सोलसुत्तरसयं च । xxx एक्कारसदसनवगं गणाण माणं जिणिंदाणं ॥ -आव० निगा २८८/पूर्वार्ध व २६०/उत्तरार्ध मलय टीका-भगवत आदि तीर्थकरस्य चतुरशीतिर्गणा, गणो नामेह एकवाचनाचारक्रियास्थानां समुदायो, न कुलसमुदाय इति पूर्वसूरयः, अजितस्वामिनः पंचनवतिर्गणाः संभवनाथस्य ह्युत्तरं शतम् अभिनन्दनस्य षोडशोत्तरं शतं x x x अरिष्ठनेमेरेकादश पार्श्वनाथस्य वर्द्धमान स्वामिनो नव, एतत् जिनेन्द्राणाम-ऋषभादीनां जिनानां यथाक्रमं गणानां मान-परिमाणं । गण अर्थात् एक वाचना-आचार क्रियावाले साधुओं का समुदाय । परन्तु कुल समुदाय को गण नहीं कहा जाता है। एक समाचारी का पालन करने वाले साधु-समुदाय को गण कहा जाता है। __ भगवान् ऋषभदेव के चौरासी गण थे तथा वर्धमान तीर्थंकर के नौ गण थे। (घ) मलय टीका-भगवत आदितीर्थकरस्य चतुरशीतिर्गणा, गणो नामेह एकवाचनाचारक्रियास्थानां समुदायो, न कुलसमुदाय इति पूर्वसूरयः xxx वर्द्धमानस्वामीनो नव । x x x । सम्पति गणधरप्रतिपादनार्थमाह___ एक्कारस उ गणधरा वीरजिणिंदस्स सेसयाणंतु। जावइया जस्स गणा तावइया गणधरा तस्स ॥२६॥ __-आव० निगा २६१ मलय टीका-गण धरा नाम मूलसूत्रकर्तारः, ते च वीरजिनस्य एकादश, गणास्तु नव, द्वयोर्युगल सोरैकवाचनाच रक्रिया स्थत्वात्, शेषाणां तुजिनवरेन्द्राणां यस्य यावन्तो गणस्तस्य तावन्तो गणधरा, प्रतिगणधरं भिन्न-भिन्न वाचनाचारक्रियास्थत्वात् । भगवान् ऋषभदेव के चौरासी गण थे तथा चौरासी ही गणधर थे। चूंकि भगवान् महावीर को बाद देकर शेष तीर्थंकरों के जितने गण होते हैं, उतने गणधर होते हैं लेकिन भगवान् महावीर के नौ गण तथा ग्यारह गणधर थे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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