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________________ वर्धमान जीवन-कोश १८३ तथैव मिथिलापुर्या देवनाम्नो द्विजन्मनः। अभूदकंपितो नाम जयंतीकुक्षिजः सुतः ॥५६।। अभूञ्च कोशलापूर्या वसुनाम्नो द्विजन्मनः । सूनुर्नाम्नाऽचलभ्राता नन्दाकुक्षिसमुद्भवः ॥५णा वत्सदेशे तुंगिकाऽख्ये सन्निवेशे द्विजन्मनः। दत्तस्य सूनुर्णातार्यों वरुणाकुक्षिभूरभूत् ॥५८। तथा पुरे राजगृहे बलनाम्नो द्विजन्मनः। प्रभासो नाम पुत्रोऽभूदतिभद्रोदंरोद्भवः ॥५६॥ एकादशापि तेऽभूवश्चतुर्वेदाब्धिपारगाः। गौतमाद्याः उपाध्यायाः पृथक् शिष्यशतवृताः ॥६॥ –त्रिशलाका० पर्व १०/सर्ग ५ भगवान महावीर के समय में मगध देश में गोबर नामक ग्राम में वसुभूति नामक एक गौतम गोत्रीय ब्राह्मण रहता था। उसके पृथ्वी नाम की स्त्री से इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति नामक तीन गौतम गोत्रीय पुत्र थे। कोल्लाक ग्राम में धनुभित्र और धम्मिल्ल नामक दो ब्राह्मण थे। उनके वारुणी और भद्दिला नाम की स्त्रियों से व्यक्त और सुधर्मा नामक दो पुत्र थे । मौर्य ग्राम में धनदेव और मौर्य नामक दो विप्र थे। वे परस्पर मासी के पुत्र भाई थे। उनमें धनदेव को विजयदेवी नाम की पत्नी से मंडिक नाम एक पुत्र हुआ था। उसके जन्म होते ही धनदेव मृत्यु को प्राप्त हो गया। उसका लोकाचार विधि से स्त्री विना का मौर्य विजयदेवी के साथ विवाह किया। देशाचार लज्जा के लिए नहीं होता। अनुकमतः मौर्य से विजयदेवी के एक पुत्र हुआ वह लोक में 'मौर्यपुत्र' नाम से प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ। इसी प्रकार विमलापुरी में देव नामक ब्राह्मण को जयंती नाम की स्त्री से अकंपित नामक एक पुत्र हुआ। कोशलानगरी में वसु नामक ब्राह्मण को नंदा नाम की स्त्री के उदर से अचलभाता नामक एक पुत्र हुआ। वत्सदेश में तुंगिक नामक ग्राम में दत्त नामक ब्राह्मण को करुणा नाम को स्त्री से मेतार्य नामक पुत्र हुआ। राजगृह नगर में बल नामक ब्राह्मण को अतिभद्रा नामको स्त्री से प्रभास नामक पुत्र हुआ। ये ग्यारह वित्र मार चार वेद रूपी सागर के पारगामी हुए और गौतमादिक उपाध्याय होकर अलग-अलग सैंकड़ों शिष्यों से विचरते रहते थे । अपापा नगरी में सोमिल नामक एक धनाढ्य ब्राह्मण यज्ञकर्म में विचक्षण-ऐसे ग्यारह ब्राह्मणों को यज्ञ करने के लिए बुलाया था । .१६ भगवान महावीर के गण और गणधर (क) समणस्स णं भगवतो महावीरस्स णवगणा हुत्था, तंचहा-गोदासगगे, उत्तरबलिस्सहगणे, उहे हगणे, चारणगणे, उद्दवाइयगणे, विस्सवाइयगगे, कामड्ढियगगे, माणवगगे, कोडियगणे । –ठाण० स्था/सू २६/पृ० ७८२-३ भगवान् महावीर के एक क्रिया और वाचना वाले साधुओं के समुदाय रूप नव गण थे-यथा१-गोदास गण, २-उत्तरबलिस्सह गण, ३-उद्देह गण, ४-चारण गण, ५-उड्डुपाटिक गण ६-वेशपाटित गण, ७-कामद्धिक गण, ८-मानव गण, ९-कोटिक गण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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