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________________ १८२ वर्धमान जीवन-कोश से पवित्र थे। नक्वें-अकम्पन जो सदैव तपस्या में अकम्प रहते थे। दसवें-अचल और ग्यारहवें-प्रभास जो देह के अनुराग से रहित और कामदेव के विनाशक थे । अस्तु भगवान महावीर जिनेन्द्र-के-ये ग्यारह गणधर मुनि हुए जो शल्यरहित और महान थे। xxx इति श्रुतद्धिभिः पूर्णोऽभूवं गणभृदादिमः ॥३७२।। ततः परं जिनेंद्रस्य वायुभूत्यग्निभूतिको। सुधर्ममौयौँ मौंद्राख्यः पुत्रमैत्रेयसंज्ञकौ ॥३७३॥ अकंपनोऽन्धवेलाख्यः प्रभासश्च मया सह । एकादशेंद्रसंपूज्याः सम्मतेर्गणनायकाः ॥३७४।। -उत्तपु०/पर्व ७४/श्लो ३७२-३७३-७४ एयारह गणधर तहो जायई, इंदभुइ धुरिधरि तणुकायई। -वड्ढच० संधि १०/कड ४० अथेन्द्रभूतिरेवाद्यो वायुभूत्यग्निभूतिको। सुधर्ममौर्यमौण्ड्याख्यपुत्रमैत्रेयसंज्ञकाः॥ अकम्पिनोऽन्धवेलाख्यः प्रभासोऽमी सुरार्चिताः एकादश चतुर्ज्ञानाः सन्मतेः स्युर्गणाधिपाः॥ -वीरवर्धच० अधि १६/श्लो २०६-७ वीर जिनेंद्र के ग्यारह गणधरों में इन्द्रभूति गौतम प्रथम गणधर थे। दूसरे वायुभूति, तीसरे अग्निभूति, चौथे-सुधर्मा, पाँचवे - मौर्य, छठे-मौड्य (मण्डिक), सातवें -पुत्र (?), आठवें-मैत्रेय, नववें-अकम्पन, दसवें-अंधवेल और ग्यारहवें-प्रभास गणधर हुए। ये वीर भगवान् के सभी गणधर देवपूजित और चार ज्ञान के धारक थे। (ग) तंदालं छत्तीसा पणतीसा तीस अट्ठवीसाय। अट्ठारस-सत्तरसेक्कारस-दस-एक्कास य वीरंतं ।। ध ४३, संति ३६, कथु ३५, अर ३०, म २८, मु १८, ण १७, णे ११, पा १०, वीर ११ । -तिलोप० अधि ४/गा ६६३ धर्मनाथ तीर्थ कर से लेकर महावीर पर्यन्त क्रमशः तेतालीस, छत्तीस, पैंतीस, तीस, अट्ठाईस, अट्ठारह, सत्तरह, पारह, दस और ग्यारह गणधर थे। अतः वीर भगवान् के ग्यारह गणधर थे। (घ) इत्तश्च मगधे देशे गोवरग्रामनामनि। ग्रामे गोतमगोत्रोऽभूद्वसुभूतिरिति द्विजः ॥४६॥ तस्येन्द्रभूत्यग्निभूतिवायुभूत्यभिधाः सुताः। पत्न्यां पृथिव्यामभवंस्तेऽपि गोत्रेण गोतमाः ॥५०॥ कोल्लाकेऽभूद्धनुमित्रो धमिल्लश्च द्विजस्तयोः। पुत्रौ व्यक्तः सुधर्मा च वारुणीभद्रिलाभवौ ॥५॥ धनदेवश्च मौर्यश्च मौर्याऽख्ये सन्निवेशने। द्वावभूतां द्विजन्मानौ मातृष्वस्र यकौ मिथः ॥५२॥ पत्त्यां विजयदेवायां धनदेवस्य नन्दनः। मंडिकोऽभूत्तत्र जाते धनदेवो व्यपद्यत ॥५३॥ लोकाचारो ह्यसौ तत्रेत्यभार्यो मौर्यकोऽकरोत् । भायो विजयदेवां तां देशाचारो ति त हिये ॥४॥ क्रमाद्विजयदेवायां मौर्यस्य तनयोऽभवत्। स च लोके मौर्यपुत्र इति नाम्नैव पप्रथे ॥५५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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