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________________ वर्धमान जीवन-कोश ऐसा विचार कर गौतम गोत्र से विभूषित गौतम विप्र को उत्तम और गणधर पद के योग्य जानकर किस उपाय से वह द्विजोत्तम गौतम यहाँ पर आयेगा, इस प्रकार प्रसन्न बुद्धि सौधर्मेन्द्र ने गंभीरतापूर्वक चिन्तवन किया। कुछ देर तक चिन्तवन करने के पश्चात् वह मन ही मन बोला-अहो ! उसके जाने के लिए मैंने यह उपाय जान लिया है कि विद्या आदि गर्व से युक्त उससे कुछ दुर्घट (अति कठिन) काव्यादि के अर्थ को शीघ्र उस ब्राह्मण के आगे जाकर कहूँ ? उस काव्य के अर्थ को नहीं जानने से वह वाद ( शास्त्रार्थ ) का इच्छुक होकर स्वयं ही यहां पर भा जायेगा। हृदय में ऐसा विचार कर वह बुद्धिमान् सौधर्मेन्द्र लकड़ी हाथ में लिए हुए वृद्ध ब्राह्मण का वेष बना करके उस गौतम के निकट गया। विद्या के मद से उद्धत गौतम को देखकर उसने उनसे कहा-हे विप्रोत्तम! आप विद्वान हैं, अता मेरे इस एक काव्य का अर्थ विचार करे। मेरे गुरु श्री वर्धमान स्वामी है, वे इस समय मौन धारण करके विराज रहे हैं और मेरे साथ नहीं बोल रहे हैं। अतः काव्य के पर्व को जानने की इच्छा वाला होकर मैं आपके पास यहाँ आया हूँ । काव्य का अर्थ जान लेने से यहाँ मेरी बहुत अच्छी आजीविका हो जायेगी-भव्यजनों का उपकार भी होगा और बापकी ख्याति भी होगी। २ गौतम के प्रश्न अथासौ गौतमस्वामी प्रणम्य शिरसा मुदा । हितं जगत्सतामिच्छन् स्वस्य श्रीतीर्थनायकम् ।।२।। अज्ञानोच्छित्तये ज्ञानप्राप्त्यै सर्वज्ञगोचराम् । प्रश्नमालामिमामप्राक्षीद् विश्वांगिहितां पराम ॥३॥ देवादेर्जीवतत्त्वस्य लक्षणं कीदृशं भुवि । कावस्था च कियन्तो हि गुणाभेदा द्विधात्मकाः ॥४॥ के पर्यायाः कियन्तो बा सिद्धसंसारिगोचराः। अजीवस्यापि तत्त्वस्य के प्रकारा गुणादयः ॥५॥ किमत्र बहुनोक्तन भूतं भावि च साम्प्रतम् । त्रिकालविषय ज्ञानं द्वादशांगभवं चयत् ॥२४॥ तत्सर्व त्वं कृपानाथ दिव्येन ध्वनिना दिश । भव्यानामुपकाराय स्वर्गमुक्तिवृषाप्तये ॥२५॥ -बीरवर्धमानच० अधि १६ उन गौतम स्वामी ने तीर्थनायक श्री महावीर प्रभु को हर्ष के साथ सिर से प्रणाम करके अपने तथा जगत के संतजनों के हितार्थ अज्ञान के विनाश और ज्ञान की प्राप्ति के लिए समस्त प्राणियों का हित करने वाली यह सर्वज्ञ-गम्य उत्तम प्रश्नावली पूछी। हे देव ! सात तत्त्वों में जो संसार में जीव तत्त्व है, उसका कैसा लक्षण है, केसी अवस्था है, कितने गुण है, उनके विभागात्मक कितने भेष हैं, कितनी पर्याय हैं, सिद्ध और संसारी विषयक उसके कितने भेद हैं ? इसी प्रकार अजीव तत्त्व के भी कितने भेद, गुण और पर्याय आदि हैं। *३ गौतम के प्रश्न करने पर-प्रथम देशना भगवान द्वारा-दिव्यध्वनि के द्वारा उपदेश इति प्रश्नवशाहवो विश्वभव्यहितोद्यतः । तत्त्वादिप्रश्नराशीनां सद्भावं च तदीप्सितम् ॥२६॥ दिव्येन ध्वनिना तीर्थेद् स्वर्गमुक्तिसुखाप्तये । प्रारेमे वक्तुमित्थं च मुक्तिमार्गप्रवृत्तये ॥२७॥ शृणुधीमन् मनः कृत्वा स्थिरं सर्वगणैः समम् । प्रोच्यमानमिदं सर्व त्वदभिप्रेतसाधनम् ॥२८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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