SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्णमान जीवन - कोश ११७ अतिसयरूवंपि ताव सेकंचि कालं पसामो, एवंसयं निक्खमणकाल णच्चा अवि साहिए दुवे वासे सीतोदगमभोच्चा विखते अष्फासुगं आहारं राइभत्तं च अणाहारेतो बंभयारी असंजमवाररहितो ठिओ, ण य फासुगेणवि पहातो हाथफदसोयणं आयमणं च परं णिक्खमणमहाभिसेगे अफसुगेणं हाणितो, जय बंधवेहिवि अतिणेह कतवं । - आव० चू० पूर्वभाग / पृ० २४६ अन्न नहीं खाया, सजीव पानो नहीं केवल हस्त पाद अप्रासुक जल से धोते बंधवों पर भी अति स्नेह नहीं किया । अभिनिष्क्रमण काल को जानकर साधिक दो वर्ष वद्धमान ने सचित्त पीया और न रात्रि भोजन किया । अचित्त जल से भी स्नान नहीं किया, थे । केवल निष्क्रमणाभिषेक के अवसर पर आप्रासुक जल से स्नान किया । २ एकत्व भावना एगत्तिगतोणाम णमे कोति णाहमवि कस्सइ । मैं अकेला हूं दूसरा कोई किसी का नहीं है-ऐसी भावना का षद्ध मान चिंतन करते । * १४ जीव- सचित्त - अचित्त का ज्ञान पुढवि च आउकायं, ते कार्यं च वाडकायं च । पणगाई बीय-हरियाई, तसकायं च सव्वसो णच्चा एयाई संति पडिले, चित्तमताई से अभिण्णाय । परिवज्जिया ण विहरित्था, इति संखाए से महावीरे ॥ - आया० श्रु १ / अ ६ / उ१ गा १२, १३ / पृ० ७३ टीका - xxx । पुढविच इत्यादि इयाई इत्यादिश्लोकद्वयस्याप्ययमथं एतानि पृथिव्यादीनि चित्तमत्यभिज्ञाय तदारंभ पर विज विहरति स्म क्रियाकारक संबंधः । x x x । (यहां पृथ्वीकाय, अप्काय, ते काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय पनक-बीज - हरित) तथा त्रसकाय के भेदों का वर्णन है । ) xxx एतानि पृथिव्यादीनि भूतानि संति विद्यत इत्येवं प्रत्युपेक्ष्य तथा चित्तमन्ति सचेतनान्यभिज्ञाय ज्ञात्वा इत्येतत्संख्यावगम्य स भगवान्महावीरस्तदारंभं परिवर्ज विहृतवानिति - आया०श्रु १ / अ ६ / उ१/गा १२, १३ पृथ्वीकाय, अपूकाय, अग्निकाय, वायुकाय, पनक, बीज, हरितादि वनस्पतिकाय तथा सकाय को सबंधा - सर्व प्रकार - भेदविभेदों को जानकर, ये सभी काय अस्ति विद्यमान है - ऐसा देखकर तथा ये काय सचित्तसचेतन होती हैं इससे अभिज्ञात होकर तथा इन सभी भेद- विभेदों से, अस्तित्व से तथा सचेतनत्व से अवगम्यपरिज्ञात होकर भगवान ( इन कार्यों के आरम्भ ) का परिहार कर विहरण करते थे । XXX I - आया० चू० पृ० ३०४ '१५ दीक्षा - पर्याय X X X उसभस्स पुव्वलक्खं पुब्वं गूणमजियस्स तं चेव । सरी बितवासा दिक्खाकालो जिणिदाणं । -- आव० निगा २६४ / पूर्वार्ध, २६८ / उत्तरार्ध मलयटीका - ऋषभस्य भगवतः श्रमणपर्याय एकं पूर्वलक्षम्, XXX पार्श्वनाथस्य सप्ततिर्वर्षाणां वर्द्धमानस्वामिनो द्वाचत्वारिंशत् - xxx । ऋषभादीनां दीक्षाकालो---व्रतपर्यायः । ऋषभनाथ भगवान् की श्रमणपर्याय का कालमान एक लाख पूर्वका था । वर्धमान स्वामी की श्रमणपर्याय का कालमान बयालीस वर्ष का था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy