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________________ ११६ वधमान जीवन-कोश . सामिणा अमूढणं वामहत्थेणं सत्ततले उच्छूढो । -आव० चू० पूर्वभाग, पृ०।। प्रमदधन में भगवान् आमलकी क्रीड़ा-खेल खेलते थे। सांप को पकड़कर एक ओर डाल दिया। तिसक खेल दो-दो बालकों के बीच यह खेल खेला जाता था। दोनों बालक लक्षित वृक्ष की ओर पड़ते। जो बालक लक्षित वृक्ष को सबसे पहले छ लेता, वह विजयी होता । विजयी पराजित पर सवार प्रस्थान स्थान पर आता। १० चक्रवर्ती की कल्पना पच्छा सामिणंदिवद्धणसुपासपमुहं सयणं आपुच्छति""ताहे सणियपज्जोयादयो कुमारा पडिय वा एस चक्कित्ति। -आव• चू० पूर्वभाग पृ० सुपाश्व, नन्दिवद्धन प्रमुख वद्ध'मान के चक्रवर्ती होने का साक्ष्य दे रहे थे। ११ भगवान् के अभिनिष्क्रमण का विचार और नंदिवईन पच्छा सामी पंदिवद्धणसुपासपमुहं सयणं आपुच्छति, समत्ता पतिन्नत्ति, ताहे ताणि बिगुणसोग भणति मा भट्टारगा, सव्वजगदपिता परमबंधू एक्कसराए चेव अणाहाणि होमुन्ति, इमेहिं कालगं तुब्भेहि विणिक्खमवन्ति खते खारं पक्खेवंता अच्छह कंचि कालं जाव अम्हे विसोगाणि जाता, -आव० चू० पूर्वभाग. पृ० नन्दिवर्धन सुपास प्रमुख वद्ध'मान के पास आकर बोले, भैया ! इधर माता-पिता का वियोग और। तुम्हारा घर से अभिनिष्क्रमण | क्या मैं इस शोक को सहन कर सकूगा। •१२ नंदिवद्धन के आग्रह पर दो वर्ष और गृहस्थावास में (क) अम्ह' परं बिहिं संवत्सरेहिं रायदेविसोगो णासिज्जति । -आव० चू० पूर्वभाग पृ० (ख) अम्ह परं बिहिं संघच्छरेहिं रायदेविसोगा णासिज्जिति। -आया० च्० पृ०॥ मंदिवर्द्धन के आग्रह पर भगबान दो वर्ष और विरक्तभाव से गृहवास में रहे । १३ साधिक दो वर्ष में विविध-नियम १ रात्रि-भोजन न करने तथा सचित्त जल न पीने को प्रतिज्ञा ताहे पडिस्सुत्तं तो णवरं अच्छामि जति अप्पच्छ देण भोयणादिकिरियं करेमि ताहे समार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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