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________________ वर्धमान जीवन - कोश . रज्जु करते कय सुद्देण पुव्वह तेयासी - लक्ख तेण । णीयइँ जिण धम्मुक्कंठिएण विसयंभोणिहे परिसं ठिपण | घता - अण्णहि दिणे परे लो 'लय रयण, दप्पणि देवखते णिय वयण । चक्करें संतरे लुलिउ सुइ मूलि णिहालिङ लव- पलिउ ।। १६० । - वडूमाणच० संधि ८ । कड ७ तं देवखवि चिंतइ चक्कवट्टि अरिखेत्त विमद्दण मइयवट्टि । - हउँ जिम को परु मइवंतु एम वसु विहिउ विसय विसएहि तेम । - वडूमाणच संधि ८ कड वियाणेवि मुक्ख-पह चक्कणाहो मुएऊण लच्छी महीकंचणाहो । ortऊण खेमंकरं तिरथणाह अकोह अमोह अलोह अणाहौं । घत्ता - अदेवि अरिं जयणिय सुबहो महु हुवउ दियंवरु बहुसुवहो । सहुं सोलह सहसाहिं णरंवरेहिं अवलोइज्जत सुखरेहिं ।। १६३ ।। -वढमाणच० संधि ८ । कड १० इस जम्बूदीप में श्रेष्ठ एक पूर्व विदेह नामक क्षेत्र है जहाँ सीता नदी के तट पर विशेष वरदानों से संचित तथा समस्त इन्द्रियों के विषय पदार्थों सहित कच्छा नाम का एक देश अवस्थित है । उसी कच्छा देश में नाना प्रकार के मणि-समूहों से निर्मित उत्तन एवं विशाल परकोटों वालो क्षेमापुरी नामकी एक नगरी स्थित है । उसो नगबी में नागरिक जनों के मन को हरण करने वाला, कांचन की प्रभा वाला पृथ्वीनाथ धनंजय ( नाम का राजा ) हुआ । उस राजा को प्रेमानुराग प्रभावती नामकी एक भार्या थी । जो ऐसी प्रतीत होती, मानों कामविजय की वैजयंती - पताका ही हो, जो गमन करते समय कलह हसिनी की तरह सुशोभित होती थो, जो शोभा सौन्दर्य में प्रधान अपयश एव विग्रह से दूर रहने वालो तथा लज्जा की मूर्ति के समान थी। रात्रि के अंत में शय्यातल पर निद्रावश मुकुलित नेत्रों वाली उस प्रभावती ने एक शुभ स्वप्नावली देखी तथा उसे उसने अपने प्रियतम के सम्मुख आश्चर्य उत्पन्न करते हुए कह सुनाया । तभी वह महाशुक्र देव अपनी आयुष्य पूर्णकर तथा स्वर्ग से चयकर उस रानी के यहाँ पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ, जो रूपादि गुणों से अलंकृत था और ऐसा प्रतीत होता था मानों यश ही मूर्तिमान होकर अवतरा हो ।। १ । महानन्द से परिपूरित मनवाले सज्जनों ने उस बालक का नाम प्रियदत्त रखा । - Jain Education International ६१ अन्य किसी एक दिन चन्द्रमा के समान यश से संसार को धवलित करने वाले उस याजा धनञ्जय ने भव्यजनों के लिए शिव संपदा प्रकट करने वाले मुनिराज क्षेमंकर के चरणों में प्रणाम कर उनसे एकाग्र मन होकर धर्म सुना जिस कारण उसे तत्काल ही घेराभ्य हो गया । ऐरावत हाथी की सूंड के समान भुजाओं वाले अपने उस पुत्र प्रियदत्त को राज्य सौंपकर बढ़ती हुई विषय तृष्णा का मंचन कर उस धनञ्जय ने उन मुनिराज के चरणों में दीक्षा ग्रहण कर ली ॥ २ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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