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________________ ६२४ ९० पुद्गल रूपी है धर्माधर्माकाशानि पुद्गल वर्ज भरूपं - ९१ पुद्गल और भाव तु उदयपरिणामिरूपं पुद्गल-कोश पुद्गलाः रूपिणः धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल और काल- - ये अजीव के पांच प्रकार है । जिसमें पुद्गल रूपी है बाकी चार अरूपी है । काल एव पुद्गलाः — प्रशमरति ० प्रक० ९ । गा २०७ Jain Education International चाजीवा । प्रोक्ताः ॥ तु सर्वभावानुगा जीवा । - प्रशमरति ० प्रक० ९ । गा २०९ उत्तराधं I रूप अर्थात् पुद्गलास्तिकाय में उदय - परिणामी दो भाव होते हैं । जीव द्रव्य में सर्वभाव है । वह पुद्गलास्तिकाय जो दृश्य जगत् । जो दृश्यजगत् अणु व स्कंध रूप है वह पुद्गलास्तिकाय है । •९२ स्कंध पुद्गल व उपग्रह - श्रासं ० पूर्वार्ध • गा ३० कमशरीरमनोवाग्विचेष्टितोच्छ् वासदुःखसुखदा स्युः । जीवितमरणोपग्रहकराश्च संसारिणः स्कंधाः ॥२१७॥ - प्रशम० प्रक० ९ गा २१७ कर्म, शरीर, मन-वचन, काययोग, श्वासोच्छ्वास, दुःख, सुख, जीवतर (आयुष्य ) और मरण - इन संसारिक उपकार का कर्त्ता स्कंध पुद्गल है । - ९३ किस प्रकार के कर्म द्रव्य वर्गणा के पुद्गलों का भेदन होता है नेरइया णं भंते ! कइविहा पोग्गला भिज्जंति ? गोयमा ! कम्मदव्ववग्गणमहिकिच्च दुविहा पोग्गला भिज्जंति, तंजहा - अणू चेव बादरा चेव । - भग० श १ । १ । सू १९ । पृ० ७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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