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________________ पुद्गल-कोश १४-ना सावध बलि निरवद, अजल करणी लेख नाही। बिहु काल में कह्यो सासतो, दव्य मिटे नहि काई ॥ १५-भावे पुद्गल किसो भाव है ? परिणामीक लहोजे । छ द्रव्य माही पुद्गल इक छ, नव में च्यार कहीजै ॥ १६-ना सावध नां निरवद, अजल करणी लेखेजाणो। असासतो विहुं काल अपेक्षा, न्याय विचारै नाणी ॥ -झीणीचर्चा पृ० १०१, १०२ समुच्चयको दृष्टि से पुदगल किस भाव में होता है। वह एक पारिणामिक भाव में होता है। वह छः द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य है। नव पदार्थों में उसका समवतार चार पदार्थों-अजीव, पुण्य, पाप और बंध में होता है । पुद्गल-विशुद्धि और करनी दोनों ही दृष्टियों से सावद्य-निरवद्य दोनों नहीं है। वह द्रव्य की अपेक्षा शाश्वत और भाव को अपेक्षा अशाश्वत है । द्रव्य पुद्गल किस भाव में होता है । वह अजीव पारिणामिक भाव में होता है । वह छः द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य है। नव पदार्थों में उसका समवतार केवल अजीव पदार्थ में होता है। द्रव्य पुद्गल विशुद्धि और करनी दोनों ही दृष्टियों में सावध-निरवद्य दोनों नहीं है । द्रव्य का कभी विनाश नहीं होता । इस दृष्टि से वह तीनों कालों में शाश्वत है । भाव पुद्गल अजीव पारिणामिक भाव है। छः द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य है । नव पदार्थो में-अजीव, पुण्य, पाप और बंध होता है। भाव पुद्गल विशुद्धि और करनी दोनों ही दृष्टियों से सावद्य-निरवद्य दोनों नहीं है। वह तीनों कालों में अशाश्वत है। ८९ परमाणु-स्कंध द्वचाविप्रदेशवन्तो यावदनन्तप्रदेशिकाः स्कंधा। परमाणुरप्रदेशो वर्णादिगुणेषु भचनीयः ॥२०॥ -प्रशमरति प्रक० ९ । गा २.५ दो प्रदेशी से अनंतप्रदेशी वाला पुद्गल स्कंध होता है। परमाणु अप्रदेशी है । वर्णादि गुणों से जान लेना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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