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________________ ५६० पुद्गल - कोश टीका- स एव व्यतिरिक्तस्कंधस्योऽन्यथा विविधो विज्ञयः, तद्यथाकृत्स्नस्कंधः, अकृत्स्नस्कंध ः अनेकद्रव्यस्कंधश्चेति । यस्मादन्यो बृहत्तरः स्कंधो नास्ति स कृत्स्न परिपूर्णः स्कंधः कृत्स्नस्कंधः, स च हयस्कंधः, गजस्कंधः, नरस्कंध इत्यादि । आह— यद्येवम्, प्रकान्तरत्वमसिद्धम्, सचिततुरङ्गमादिस्कंधस्यैव संज्ञान्तरेणोक्तत्वात् xxx अथाऽकृत्स्नस्कंध उक्चते - यस्मादन्यो बृहतरः स्कंधोऽस्ति, सोऽपरिपूर्णस्वादकृत्स्नस्कंध, सचद्विप्रदेशिकादिर्यावत् सर्वोत्कृष्टानन्तपरमाणुसंघातनिष्पन्न एकेन परमाणुना न्यूनस्तावद् विज्ञ ेयः । उत्कृष्टानन्ताणुस्कंधापेक्षया हये कपरमाणुम्यूनोत्कृष्टानन्ताणु कोऽकृत्स्नस्कंधः, तदपेक्षया तु परमाणुद्वयन्यूनोत्कृष्टानन्ताणुकोऽकृत्स्नस्कंधः । एवमेकैकपरमाणुहान्या तावद् नेयं यावत् विप्रदेशिकस्कंधापेक्षया द्विप्रदेशिक स्कंधोऽकृत्स्नस्कंधः । प्रागुक्ताचित्तस्कंधादस्य भेदः, पूर्व हि द्विप्रदेशिकादेः परिपूर्णोत्कृष्टानन्ताणुकस्कंधपर्य तस्य सर्वास्यप्यचित्तस्कधस्य सामान्येन संग्रहात् । परिपूर्णोत्कृष्टानन्ताणुको न संगृहयते । तस्य कृत्स्नस्कंधत्वादिति । अतएव अत्रत्वेक: अथानेकद्रव्यस्कंध उच्चते - अनेकः सचित्ता ऽचित्तलक्षणैद्रव्यनिष्पन्नः स्कंधोऽनेकद्रव्यस्कंधः स च हय-गजादिस्कंध एव xxx । अथवा व्यतिरिक्त द्रव्य स्कंध दूसरी अपेक्षा से तीन प्रकार का है - कृत्स्न स्कंध, अकृत्स्न स्कंध और अनेक द्रव्य स्कंध । जिससे अन्य कोई वृहत्तर स्कंध नहीं होता है वह कृत्स्न ( परिपूर्ण ) स्कंध जानना चाहिए । वह अश्व स्कंध, हस्ति स्कध और मनुष्यादि स्कंध जानना चाहिए । यहाँ जीव और जीव से व्याप्त शरीर के अवयव का समुदाय - कृत्स्न स्कंध रूप से कहा है । जिससे दूसरा अत्यन्त बृहत्तर स्कंध होता है वह अपूर्ण होने से अकृत्स्न स्कंध कहा जाता है वह दो प्रदेशी से लेकर सर्वोत्कृष्ट अनंत परमाणु के संघात से निष्पन्न स्कंध में एक परमाणु से न्यून स्कंध पर्यंत जानना चाहिए। क्योंकि उत्कृष्ट अनंताणु स्कंध की अपेक्षा से एक परमाणु न्यून उत्कृष्ट अनन्ताणुवाला स्कंध अकृत्स्न (अपूर्ण) स्कंध कहा जाता है । उसकी अपेक्षा दो परमाणु न्यून उत्कृष्ट अनंत अणु स्कंध - अकृत्स्न स्कंध कहा जाता है । इस प्रकार एक-एक परमाणु की हानि से अंतिम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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