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________________ ५३८ पुद्गल-कोश सकम्प द्विप्रदेशी स्कंध का स्वस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल तथा परस्थान आश्रयी जघन्य एक समय उत्कृष्ट अनंत काल का अन्तर होता है। निष्कम्प द्विप्रदेशी स्कध का स्वस्थानाश्रयी जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातवें भाग का तथा परस्थानाश्रयी जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनंत काल का अन्तर होता है । इसी प्रकार तीन प्रदेशी यावत् अनंत प्रदेशी स्कंध के विषय में जानना चाहिए। नोट -द्विप्रदेशी स्कंध चलित होकर अनंतकाल तक उत्तरोत्तर दूसरे अनंत पुद्गलों के साथ संबंध करता हुआ पुन: उसी परमाणु के साथ संबद्ध होकर पुनः चलित हो, तब परस्थान का अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर अनंत काल का होता है। दुपएसियस्स गं भंते ! खंधस्स देसेयस्स केवइयं काल अंतरं होइ ? सट्टाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं, परट्ठागंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अणंतं कालं [ सू २२८ ] सम्वेयस्स केवइयं कालं अंतरं होइ ? एवं चेव जहा देसेयस्स [सू २२९] -भग० श २५ । उ ४ देशतः (अंशतः ) सकंप द्विप्रदेशी स्कंध का स्त्रस्थान की अपेक्षा ( सकंपता) अंतरकाल जघन्य एक समय का तथा उत्कृष्ट असंख्यात काल का होता है। परस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट अनंत काल का अंतर होता है। ( देखो क्रमांक २२ ) इसी प्रकार सर्वांश रूप से सकंप द्विप्रदेशी स्कंध का अंतर समझना चाहिए। निरेयस्स केवइयं कालं अंतरं होइ ? सट्ठाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं, परढाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अणंतं कालं। एवं जाव अणंतपएसियस्स । [सू २३०] -भग० श २५ । उ ४ निष्कंप द्विप्रदेशी स्कंध का स्वस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यात भाग का तथा परस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय का उत्कृष्ट अनंत काल का अंतर समझना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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