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________________ पुद्गल-कोश ५३७ अनन्तानन्त परमाणुओं से बने हुए स्कंध कतिपय दृष्टिगोचर होते हैं, कतिपय नहीं होते हैं। दुविहा पोग्गला पन्नत्ता, तंजहा-परमाणुपोग्गला चेव नोपरमाणुपोग्गला चेव। -ठाण० स्था २ । उ ३ । सू ८२ टोका-परमाश्च ते अणवश्चेति परमाणवः नोपरमाणवः-स्कंधाः । ७० स्कंध पुद्गल का अंतर काल ( क्रमांक के लिए देखो २२ ) •१ स्कंध पुदगल का अंतरकाल दुप्पएसियस्स णं भंते ! खधस्स अंतरंकालओ केच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं एग समयं, उक्कोसेण अणंत कालं, एवं जाव--अणंतपएसिओ। -भग० श ५ । उ ७ । सू २२ द्विप्रदेशी स्कंध का अन्तर काल जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अनंत काल का है। इसी प्रकार यावत् अनंतप्रदेशी स्कंध तक जानना चाहिए। नोट-तीन प्रदेशी से दस प्रदेशी स्कंध यावत् संख्यात प्रदेशी असंख्यात प्रदेशी व अनंतप्रदेशी स्कंध का ग्रहण होता है -यावत् शब्द से । २ स्कंध पुद्गल की सकंपता का अंतरकाल __दुपएसियस्स णं भंते ! खंधस्स सेयस्स—पुच्छा। गोयमा ! सट्टाणतरं पञ्च्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असं खेज्ज कालं, परद्राणंतरं पडच्च जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अणंतं कालं। निरेयस्स केवइयं कालं अतरं होइ ? गोयमा! सट्टाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समज, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जहभागं, परट्ठाणतर पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अणंतं कालं । एव जाव-अणतपएसियस्स। -भग• श २५ । उ ४ । सू २०५, २०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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