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________________ पुद्गल-कोश ५०५ इसके बाद सिद्ध के अनंतवें भाग तथा अभव्य से अनंत गुने परमाणुओं से बने हुए स्कंधों से विस्रसा परिणाम बनी हुई वर्गणाएँ औदारिक शरीर योग्य जघन्य ग्रहण योग्य वर्गणा जाननी चाहिए। इससे एक एक परमाणुओं की वृद्धि होने से स्कधवाली धर्गणा मध्यम वर्गणा ग्रहणयोग्य वहाँ तक जाननी चाहिए जहाँ तक औदारिक उत्कृष्ट ग्रहण योग्य वर्गणा होती है। उत्कृष्ट औदारिक ग्रहण योग्य वगणा से एक प्रदेश अधिक परमाणुवाली अनंत औदारिक शरीर के अयोग्य जघन्म वर्गणा जाननी चाहिए। इसके बाद एक एक अणु की वृद्धि होने से-औदारिक शरीर के अयोग्य मध्यम वर्गणा वहाँ तक जाननी चाहिए यावत् उत्कृष्ट औदारिक अयोग्य वर्गणा होती है। ये सब वर्गणा बहु परमाणुओं से निष्पन्न होने के कारण स्वाभाविक सूक्ष्म परिणामवाली होती है अतः औदारिक शरीर के अग्रहण योग्य है क्योंकि औदारिक शरीर स्थूल स्कंधों से उत्पन्न होता है । ___ जैसे जैसे परमाणुओं की वृद्धि होती है वैसे-वैसे स्कंधों में परिणाम सूक्ष्म होता है और जैसे-जैसे परमाणु अल्प होते हैं वैसे-वैसे परिणाम स्थूल होते हैं। वह वर्गणा औदारिक शरीर की अपेक्षा ही प्रचुर परमाणुओं वाली और सूक्ष्म परिणाम वाली होती है। और वैकिय की अपेक्षा स्वल्प परमाणुओं से उत्पन्न होने से स्थूल परिणामवाली होती है इसलिए वह वैकिय परीर के ग्रहण योग्य नहीं है क्योंकि वैकिय शरीर पूर्व के औदारिक शरीर की अपेक्षा सूक्ष्म स्कंधों से उत्पन्न होता है । .१ वर्गणा (क) उत्कृष्टौदारिकानां यास्ता एकाणुनाधिकाः। जघन्या वैक्रियाहाः स्यु-स्ततो द्वयाद्यणुभिर्युताः॥ मध्यमा वैक्रियार्हाः स्यु - स्तदोत्कृष्टकावधिः । जघन्यमध्यमोत्कृष्टा वैक्रियानुचितास्ततः॥ वैक्रियापेक्षया भूयो - ऽणुकाः सूक्ष्मा अमूः किल । आहारकापेक्षया च स्थूलाः स्तोकाणुका इति ॥ -लोकप्र. सर्ग ३५/गा २२ से २४/पृ०६५२ औदारिक के अयोग्य उत्कृष्ट वर्गणा से एक परमाणु से अधिक वह जघन्य वैकिय के ग्रहणयोग्य वर्गणा समझनी चाहिए। उसमें दो आदि परमाणुओं के युक्त होने से मध्यम वैकिय योग्य वर्गणा होती है वह वैकिय योग्य उत्कृष्ट वर्गणा तक समझनी चाहिण । उसके बाद वैकिय के अयोग्य जघन्य, मझ्यम और उत्कृष्ट वर्गणा समझनी चाहिए। क्योंकि वह वैकिय की अपेक्षा वृद्धि परमाणु वाली और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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