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________________ पुद्गल - कोश ४५१ इसी प्रकार अजघन्य - अनुत्कृष्ट अवगाहनावाले चतुष्प्रदेशी स्कंध अजघन्यअनुत्कृष्ट अवगाहनावाले चतुःप्रदेशी स्कंध से द्रव्य रूप से तुल्य है, प्रदेश रूप से भी तुल्य है, स्थिति रूप से चतुःस्थान न्यूनाधिक है अथवा तुल्य है । वर्ण- गंध-रस स्पर्श ( शीत-उष्ण-स्निग्ध- रूक्ष स्पर्श पर्याय रूप से ) पर्याय रूप से छःस्थान न्यूनाधिक है अथवा तुल्य है । लेकिन अवगाहना रूप से कदाचित् न्यून है, कदाचित् तुल्य है, कदाचित् अधिक है । यदि न्यून है तो एक प्रदेश न्यून है; यदि अधिक है तो एक प्रदेश अधिक है । जिस प्रकार चतुः प्रदेशी स्कंध के विषय में कहा है वैसे ही पाँच प्रदेशो यावत् दस प्रदेशी स्कंध के विषय में जानना चाहिए । परन्तु - अजघन्य- अनुत्कृष्ट अवगाहना में प्रदेश की वृद्धि-हानि करनी चाहिए। यथा अजघन्य- अनुत्कृष्ट ( मध्यम ) अवगाहनावाले अजघन्य- अनुत्कृष्ट अवगाहनावाले पाँच प्रदेशी स्कंध से अवगाहना रूप से कदाचित् न्यून है, कदाचित् तुल्य है, कदाचित् अधिक है । यदि न्यून है तो एक प्रदेश न्यून है अथवा दो प्रदेश न्यून है । यदि अधिक है तो एक प्रदेश अधिक है अथवा दो प्रदेशी अधिक है । अजघन्य - अनुत्कृष्ट ( मध्यम ) अवगाहनावाले छः प्रदेशी स्कंध अजघन्य- अनुत्कृष्ट अवगाहनावाले छः प्रदेशी स्कंध से अवगाहना रूप से कदाचित् न्यून है, कदाचित् तुल्य है, कदाचित् अधिक है । यदि न्यून है तो एक प्रदेश न्यून है अथवा दो प्रदेश न्यून है अथवा तीन प्रदेश न्यून है । यदि अधिक है तो एक प्रदेश अधिक है अथवा दो प्रदेश अधिक है अथवा तीन प्रदेश अधिक है । अजघन्य - अनुत्कृष्ट अवगाहनावाले सात प्रदेशी स्कंध अजघन्य - अनुत्कृष्ट अवगाहनावाले सातप्रदेशी स्कंध से अवगाहना रूप से कदाचित् न्यून है, कदाचित् तुल्य है, कदाचित् अधिक है । यदि न्यून है तो एक प्रदेश न्यून है अथवा दो प्रदेश न्यून है अथवा तीन प्रदेश न्यून है अथवा चार प्रदेश न्यून है । यदि अधिक है तो एक प्रदेश अधिक है अथवा यावत चार प्रदेश अधिक है । अजघन्य-अनुत्कृष्ट अवगाहनावाले आठ प्रदेशी स्कंध अजघन्य - अनुत्कृष्ट अवगाहृनावाले आठ प्रदेशी स्कंध से अवगाहना रूप से कदाचित् न्यून है, कदाचित् तुल्य है, कदाचित अधिक है । यदि न्यून है तो एक प्रदेश न्यून है यावत् पाँच प्रदेश न्यून है । यदि अधिक है तो एक प्रदेश अधिक है अथवा यावत् पाँच प्रदेश अधिक है । अजघन्य- अनुत्कृष्ट अवगाहनावाले नव प्रदेशी स्कंध से अजघन्य - अनुत्कृष्ट अवगाहनावाले नव प्रदेशी स्कंध से अवगाहना रूप से कदाचित् न्यून है, कदाचित् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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