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________________ पुद्गल-कोश ४१९ उस समय के अन्य तोर्थियों का वक्तव्य था कि दो, तीन, चार अथवा पाँच परमाणु - उनमें स्नेहकाय होने के कारण बंधन को प्राप्त होते हैं । महावीर उनके इस कथन का प्रतिवाद करते हुए कहते हैं लेकिम भगवान दो परमाणु पुद्गल परस्पर में बंधन को प्राप्त होते हैं और इस बंधन को प्राप्त होने का कारण इनकी स्निग्धता ( स्नेहकाय ) है । इसी प्रकार तीन, चार या पाँच परमाणु स्निग्धता के कारण परस्पर बंधन को प्राप्त होते हैं । ये दो, तीन, चार, पाँच आदि परमाणुओं के बंधन से बने हुए स्कंध आशाश्वत होते हैं और सदा उपचय और अपचय को प्राप्त होते रहते हैं । टीकाकार इसका निम्न प्रकार से स्पष्टीकरण करते हैं । उनका कथन है कि केवल स्निग्धता ही परमाणुओं के बंधन का कारण नहीं है, रूक्षता भी बंधन का कारण है । एक अकेले परमाणु में शीत-उष्ण, स्निग्ध- रूक्ष इन चार स्पर्शो में कोई दो अविरूद्ध स्पर्श एक काल में अवश्य होते हैं । यदि दो परमाणुओं में स्निग्धता होती है तो उनका बंधन स्निग्धता गुण की विषमता के कारण होता है । तथा यदि दो परमाणुओं से रूक्षता होती है तो उनका बंधन भी रूक्षता गुण की विषमता के कारण होता है । जैसे कहा है कि - "सम - स्निग्धता में तथा सम- रूक्षता में बंधन नहीं होता है । विषम स्निग्धता तथा विषम स्निग्धता तथा विषम रूक्षता होने से परमाणु से लेकर स्कंध तक बंधन होता है ।" - टीका- - जघन्य गुण स्निग्धों का जघन्य गुण स्निग्धों के साथ तथा जघन्य गुण रूक्षों का जघन्य गुण रूक्षों के साथ बंधन नहीं होता है । निकृष्ट - निम्नतम को जघन्य कहते हैं । जघन्य शब्द से एक संख्या को और गुण शब्द से शक्ति के अंश को ग्रहण करना चाहिए । जघन्य गुणांश पुद्गलों का बंध नहीं होता है । यहाँ परस्पर शब्द से सजातीय-विजातीय दोनों ग्रहण करना चाहिए । अर्थात् एक गुण स्निग्ध पुद्गल का एक गुण स्निग्ध या एक गुण रूक्ष पुद्गल के साथ बंध नहीं होता है, उसी प्रकार एक गुण रूक्ष पुद्गल का एक गुण स्निग्ध या एक गुण रूक्ष पुद्गल के साथ बंध नहीं होता है । स्वस्थान की अपेक्षा जघन्य गुणांश स्निग्धों का जघन्य गुणांश स्निग्धों के साथ तथा जघन्य गुणांश रूक्षों का जघन्य गुणांश रूक्षों के साथ बंधन नहीं होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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