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________________ ४१८ जयन्येतर + समाजघन्येतर जघन्येतर + एकाधिक ज० जघन्येतर + द्वय अधिक जघन्येतर + वयादि अधिक पुद्गल-कोश नहीं है नहीं है है है है है नहीं है नहीं है है है है है Jain Education International नहीं है नहीं है है है नहीं है बंधन के नियम (ग) अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि दो परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति । कम्हा दो परमाणुयोगला एगयओ साहणंति ? दोन्हं परमाणुपोग्गलाणं अस्थि सिणेहकाए, तम्हा दो परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति x x x नहीं नहीं नहीं नहीं है है नहीं नहीं तिष्णि परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति, कम्हा तिष्णि परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति ? तिन्हं परमाणुपोग्गलाणं अस्थि सिणेहकाए, तम्हा तिष्णि परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति x x x एवं जाव चत्तारि । पंच परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति । एगयओ साहणित्ता खंधत्ता कज्जं । खंधे वि य णं से असासए सया समियं । उवचिज्जइ य अवचिज्जइ य । -भग श ० १ । उ १० । सू ३१८, ३१९, ३२० । पृ० ४१५ टीका - x x x "दोन्हं परमाणुपोग्गलाणं अत्थि सिणेहकाएं' ति एकस्य अपि परमाणोः शीतोष्ण-स्निग्ध-रूक्ष स्पर्शानाम्-अन्यतरद् अविरुद्ध स्पर्शद्वयम् एकदा एव अस्ति, ततो द्वयोरपि तयोः स्निग्धभावात् स्नेहकायो - स्त्येव ततश्च तौ विषमस्नेहात् संहन्येते, इदं च परमतानुवृत्त्या उक्तम्, अन्यथा रूक्षौ अपि रूक्षत्ववैषभ्ये संहन्येते एवयदाहः – “समनिद्धयाए बंधो न होइ, समलुक्खयाए वि न होइ । वेमायनिद्ध - लुक्खत्तणणं बंधो उ धाणं "त्ति । 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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