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________________ ३७२ पुद्गल-कोश इसी प्रकार द्विप्रदेशी स्कंध यावत् असंख्यात प्रदेशी स्कंध गंगा महानदी के सकता है परन्तु तत्र स्थित रहकर भी वे स्कंध प्रतिस्रोत - प्रवाह में प्रवेश कर प्रतिस्खलित नहीं होते हैं । प्रवाह में प्रवेश कर कोई एक अनंतप्रदेशी स्कंध गंगा महानदी के प्रतिस्रोतसकता है परन्तु तत्र स्थित रहकर भी प्रतिस्खलित नहीं होता है । तथा कोई एक अनंतप्रदेशी स्कंध गंगा महानदी के प्रतिस्रोत प्रवाह में प्रवेश कर, वहाँ स्थित रहकर प्रतिस्खलित हो जाता है । इसी प्रकार द्विप्रदेशी स्कंध यावत् असंख्यात प्रदेशी स्कंध उदगावर्त अथवा उदक बिन्दु में प्रवेश कर सकता है परन्तु तत्र स्थित वे स्कंध पुद्गल विनष्ट नहीं होते हैं । कोई एक अनंतप्रदेशी स्कंध उदगावर्त अथवा उदग बिन्दु में प्रवेश कर सकता है परन्तु तत्र स्थित रहकर वह विनष्ट नहीं होता है तथा कोई एक अनंत प्रदेशी स्कंध उदगावर्त अथवा उदग बिन्दु में प्रवेश कर, वहाँ स्थित रहकर विनष्ट हो जाता है । टीकाकार ने कहा है- जो अनंतप्रदेशी स्कंध तथाविध बादर परिणाम वाला होता है, वह छेदन - भेदन को प्राप्त होता है और जो अनंतप्रदेशी तथाविध सूक्ष्म परिणाम वाला होता है वह छेदन - भेदन को प्राप्त नहीं होता है । •५१८ स्कंध पुद्गल का अस्तिकायत्व - ( पाठ के लिए देखो – क्रमांक ३१८ ) स्कंध पुद्गल बहुप्रदेशी होते हैं अतः स्कंघ पुद्गल अस्तिकाय होते हैं । -५१९ स्कंध पुद्गल के वर्ण - रस स्पर्श (क) दुपएसिए गं भंते! खंधे कइवन्ने पुच्छा । गोयमा ! सिय एगवन्ने, सिय दुवन्ने, सिय एगगंधे, सिय दुगंध, सिय एगरसे, सिय दुरसे, सिय दुफासे, सिय तिफासे, सिय चउफासे पन्नत्ते । एवं तिपएसिए वि, नवरं सिय एगवन्ने, सिय दुवन्ने, सिय तिवन्ने । एवं रसेसु वि, सेसं जहा दुपए सियस्स । एवं चउपएसिए वि, नवरं सिय एगवन्ने, जाव सिय चवन्ने । एवं रसेसु वि, सेसं तं चेव । एवं पंचपएसिए वि, नवरं सिय एगवन्ने, जाव सिय पंचवन्ने, एवं रसेसु वि, गंधफासा तहेव । जहा पंचपएसिओ एवं जाव - असं खेज्जपएसिओ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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