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________________ पुद्गल-कोश ३७१ एवं अगणिकायरस मज्भंमज्भेणं, तहि णवरं क्रियाएज्ज' भाणियव्वं, एवं पुक्खल संवट्टगस्स महामेहस्स मज्भंमज्झेणं, तह 'उल्लेसिया, एवं गंगाए महाणईए पडिसोयं हव्वं आगच्छेज्जा, तहिं विणिहायं आवज्जेज्ज, उदगावत्तं वा उदर्गाबिंदु वा ओगाहेज्ज से णं तत्थ परियावज्जेज्ज । टोका- xxx " अत्थे गइए छिज्जेज्ज' त्ति तथाविधबादरपरिणामत्वात्, 'अत्थेगइए नो छिज्जेज्ज' त्ति सूक्ष्मपरिणामत्वात् × × × । — भग० श ५ | उ ७ । सू ७, ८ पृ० ४८३ - परमाणु पुद्गल की तरह - द्विप्रदेशी स्कंध यावत् दसप्रदेशी स्कंध यावत् संख्यातप्रदेशी स्कंध यावत् असंख्यातप्रदेशी स्कंध तलवार की धार या क्षुरधार ( उस्तरे की धार ) पर रह सकता है । उस तलवार की धार या क्षुर की धार पर स्थित उन स्कंधों पर शस्त्र का आक्रमण नहीं हो सकता है अतः तत्र स्थित द्विप्रदेशी स्कंध यावत् असंख्यातप्रदेशी स्कध छिन्न-भिन्न नहीं होता है । कोई एक अनंत प्रदेशी स्कंध तलवार की धार या क्षुर की धार पर रह सकता है । उस तलवार की धार या क्षुर की धार पर स्थित कोई एक अनंतप्रदेशी स्कंध पर शस्त्र का आक्रमण होता है तथा कोई एक अनंतप्रदेशी स्कंध पर शस्त्र का आक्रमण नहीं होता है ! इसी प्रकार द्विप्रदेश स्कंध यावत् असंख्यात प्रदेशी स्कंध तक अग्निकाय के बीचोबीच में प्रवेश कर वहाँ स्थित रहकर भी वे स्कंध पुद्गल दग्ध नहीं होते हैं । कोई एक अनंतप्रदेशी स्कंध अग्निकाय के बीचो-बीच में प्रवेश कर वहाँ स्थित रहकर भी दग्ध नहीं होता है । तथा कोई एक अनंतप्रदेशी स्कंध अग्निकाय के बीचो-बीच में प्रवेश कर वहाँ स्थित रहकर दग्ध हो जाता है । इसी प्रकार द्विप्रदेश स्कंध यावत् असंख्यातप्रदेशी स्कंध पुष्कर - संवर्तक नामक महामेघ के मध्य में प्रवेश कर सकता है परन्तु तत्र स्थित रहकर भी वे स्कंध पुद्गल आर्द्रभाव ( गीलापन ) को प्राप्त नहीं होते हैं । कोई एक अनंत प्रदेशी स्कंध पुष्कर-संवर्तक नामक महामेघ के मध्य में प्रवेश कर सकता है परन्तु तत्र स्थित रहकर भी आर्द्रभाव को प्राप्त नहीं होता है तथा कोई एक अनंत प्रदेश स्कंध पुष्कर-संवर्तक नामक महामेघ के मध्य में प्रवेश कर सकता है लेकिन वहाँ स्थित रहकर आर्द्रभाव को प्राप्त होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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